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________________ प्रतिष्ठा के मुख्य अधिकारियों का शास्त्रीय स्वरूप ... 21 निर्वाण कलिका के रचयिता आचार्य पादलिप्तसूरि ने औषधिचूर्णकर्त्री एवं पौखणकर्त्री नारियाँ कैसी हों, इस सम्बन्ध में आगम परम्परा का समर्थन करते हुए लिखा है तदनुरूपयौवन-लावण्यवत्यो रुचिरोदारवेषा अविधवाः सुकुमारिका, गुडपिण्डपिहितमुखान् चतुरः कुम्भान् कोणेषु संस्थाप्य कांस्यपात्रे विनिहितदूर्वादध्यक्षत तर्कुकाद्युपकरण समन्विताः सुवर्णादिदान पुरस्सरमष्टौ चतस्रो वा नार्यो रक्तसूत्रेण स्पृशेयुः । श्री जिनेन्द्र परमात्मा के लिए औषधियों को घोटना एवं पौंखन करना, सुश्राविकाओं के लिए प्रभु भक्ति का प्रधान अंग है। इस प्रधान अंग का अपूर्व लाभ लेने वाली पुण्यवती नारियाँ रूप, यौवन और लावण्य से युक्त हों, अशुभ पुद्गलों से प्रभावित नहीं हो सकें ऐसे विशुद्ध एवं शकुनकारी उत्तम रेशमी वस्त्र धारण की हुई हों, रत्नजड़ित सुवर्ण के विविध आभूषणों से विभूषित हों । इन लक्षणों से युक्त अखंड सौभाग्यवती आठ या चार सुश्राविकाएँ अथवा कुमारिकाएँ सुसज्जित होकर, अष्टमंगल से आलेखित स्वर्ण, चाँदी या मिट्टी के चार कलशों के मुखभाग पर एक सुंहाली (मीठा खाजा) और गोल पापड़ी रखें। फिर उन कलशों के मुख भाग को कांसी की थाली अथवा रकेबी से ढंककर उन थालियों में दुर्वा, दही पात्र, अक्षत एवं ट्राक रखें। फिर उन कलशों को मस्तक पर धारण करते हुए जिनबिम्बों का पौखण करें। तदनन्तर उन कलशों को महोत्सव मंडप अथवा मंगल गृह के एक-एक कोने में स्थापित करें और सोना चाँदी का दान दें। फिर कलशों पर बंधे हुए रक्तवर्णीय ग्रीवासूत्र का स्पर्श करें | 20 निर्वाणकलिका के उक्त पाठ में रचनाकार ने पौंखण करने वाली नारियों का स्वरूप एवं उसकी विधि दोनों का उल्लेख किया है। इससे पौंखण कर्त्री कैसी वेशभूषादि से मण्डित होनी चाहिए और यह विधि किस प्रकार की जाती है दोनों का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। आचार्य पादलिप्तसूरि के उक्त वर्णन से यह भी फलित होता है कि जिनबिम्ब का पौंखण करने वाली स्त्रियाँ कुरूपा, वृद्धा, निस्तेज और घृणित वेश धारण की हुई नहीं होनी चाहिए। निर्वाणकलिका में औषध घोटने वाली स्त्रियों के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं है किन्तु वेशभूषादि की अपेक्षा परवर्ती आचार्यों ने उन श्राविकाओं को भी औषधि चूर्ण के योग्य माना है ।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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