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________________ 20... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन को होने से अठारह अभिषेक में सर्वप्रथम स्वर्ण जल का अभिषेक शिल्पी के हाथों से करवाया जाता था और उसके बाद अन्य स्नात्रकार स्वर्ण जल से अभिषेक करते थे। कालान्तर में शिल्पी का अधिकार लुप्त हो गया। पूर्व काल में शिल्पी का सत्कार करने हेतु उसे चाँदी की छोटी तगारी और करणी अर्पित करके प्रतिष्ठा करवायी जाती थी। यदि तगारी और करणी श्री संघ की अथवा व्यक्तिगत हो और उन्हें अर्पित न कर सकें तो शिल्पी का कुंकुम से तिलक कर लगभग तगारी और करणी मूल्य जितनी राशि अर्पण कर सत्कार करना चाहिए, जिससे शिल्पी प्रसन्न रहे। अन्य कर्मचारियों को यथायोग्य राशि देकर संतुष्ट करना चाहिए। निर्वाण कलिका में शिल्पी का स्वरूपनिरूपित करते हुए कहा गया है कि तत्राद्यः सर्वावयवरमणीयः क्षान्तिमार्दवार्जवसत्यशौचसम्पन्नः मद्यमांसादि भोग रहितः, कृतज्ञो विनीतः शिल्पी सिद्धान्तवान् विचक्षणो घृतिमान् , विमलात्मा शिल्पिनां प्रधानो जितारिषड्वर्गः कृतकर्मा निराकुल इति। शिल्पी सर्व अवयवों से सुशोभित अंग वाला, क्षमाशील, नम्र, सरल, सत्यभाषी, पवित्रता युक्त, मद्य-मांसादि का त्यागी, कृतज्ञ, विनीत, शिल्प क्रियाओं में प्रवीण, शिल्प शास्त्र का ज्ञाता, चतुर, धैर्यवान, निर्मल भावना युक्त, शिल्पियों में अग्रणी, मोहादि षड् रिपुओं का विजेता, स्थापत्य कला कौशल में सिद्धहस्त और आकुल-व्याकुलता से रहित स्थितप्रज्ञ होना चाहिए।19 उपर्युक्त मूल पाठ में 'मद्यमांसादि भोग रहित:' यह वाक्यांश वर्तमान सन्दर्भ में मुख्य रूप से ध्यान देने योग्य है। क्योंकि आजकल कारीगरों के खानपान के विषय में उतना ख्याल नहीं रखा जाता जबकि जिन मन्दिर निर्माता को इस सम्बन्ध में पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए। औषधियाँ घोटने एवं पौंखण करने वाली नारियों का स्वरूप नवीन जिनबिम्बों का अभिषेक एवं अंजनशलाका आदि विधानों में अनेक औषधियों का उपयोग किया जाता है। वे औषधियाँ मूल रूप में लाई जाती हैं। उसके बाद गुण सम्पन्न स्त्रियों के द्वारा उसका विधिवत चूर्ण तैयार करवाया जाता है। इसी भाँति नवीन बिम्बों के प्रवेश आदि के समय लोक व्यवहार के रूप में पौंखन (नेकाचार की) क्रिया की जाती है। उसके लिए भी सुयोग्य नारियों का होना आवश्यक है ऐसा पूर्वाचार्यों का अभिमत है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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