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________________ 6 ... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन होता है वह औपाधिक उपचरित स्वभाव कहलाता है। उपाधि-निमित्त, प्रतिमा में अंकित शिल्प शास्त्रोक्त मुद्रा आदि निमित्त के आलम्बन से प्रतिष्ठाकारक वीतरागता आदि गुणों का उपचार करता है। इस उपचार के द्वारा प्रतिमा में औपाधिक उपचरित स्वभाव प्रकट होता है और वह प्रतिष्ठा के पश्चात भी प्रतिमा में अवस्थित रहता है। इसलिए प्रतिष्ठाकारक के अध्यवसाय का अभाव होने पर भी प्रतिमा के अपूज्य होने का दोष नहीं आता है। शंका- प्रस्तुत सन्दर्भ में स्वाभाविक रूप से यह शंका भी की जा सकती है कि केवल भावआरोपण से जीव शिव बन जाता है तब बाह्य प्रतिमा में प्रतिष्ठा करवाने की आवश्यकता क्या ? . समाधान- इसके जवाब में कहा गया है कि जैसे रथ दो पहिये से चलता है वैसे ही जीव भी निश्चय और व्यवहार द्वारा मोक्षमार्ग में आगे बढ़ता है। भाव प्रतिष्ठा निश्चय है और प्रतिमा में प्रतिष्ठा करना व्यवहार है। प्रतिष्ठा आगम विहित क्रिया स्वरूप है। आगम अग्नि रूप है। अग्नि की प्रज्वलन रूपी क्रिया से धातु का मल दूर हो जाता है, वैसे ही आगम प्रणीत विशिष्ट प्रकार की क्रिया से जीव के कर्म समाप्त हो जाते हैं। केवल रसेन्द्र के द्वारा तांबा सोना नहीं बनता है बल्कि अग्नि क्रिया द्वारा धातु मल के जलने के पश्चात ही तांबा स्वर्ण बनता है। इस प्रकार रसेन्द्र की प्राप्ति के बाद भी अग्नि क्रिया की अपेक्षा रहती ही है । वैसे ही जीव को सिद्ध बनने के लिए भाव प्रतिष्ठा के उपरान्त आगमोक्त क्रिया प्रतिमागत प्रतिष्ठा द्वारा कर्म रूपी कचरे को जला डालने की अपेक्षा रहती ही है। इस वर्णन से सिद्ध होता है कि बाह्य प्रतिष्ठा भी सार्थक और अत्यावश्यक है। आचार्य वर्धमानसूरिकृत आचार दिनकर में प्रतिष्ठा पूर्ववर्णित परिभाषाओं से कुछ भिन्न लक्षण बतलाते हुए कहा गया है कि "प्रतिष्ठा नाम देहिनां वस्तुनश्च प्राधान्य - मान्यता हेतुकं कर्म । " अर्थात किसी व्यक्ति और वस्तु को प्रधानता या पूज्यता प्रदान करने के लिए जो क्रिया की जाती है उसे प्रतिष्ठा कहते हैं। 13 गणि कल्याण विजयजी रचित कल्याण कलिका में प्रतिष्ठा का निम्न स्वरूप बताया गया है "सजीवे निर्जिवे वा विशिष्ट वस्तुनि - अनुष्ठान विशेषेण कलोत्पादनं
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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