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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों का ऐतिहासिक... ...565 8. प्रस्तुत आठवें प्रतिष्ठाकल्प में जिन बिम्बों का नेत्रांजन करने के पश्चात निर्वाण कल्याणक की विधि दर्शाई गई है। उसके बाद देववन्दन विधि के अन्तर्गत 'प्रतिष्ठा देवता' के विसर्जनार्थ कायोत्सर्ग करने का सूचन किया गया है। यह प्रत्यक्ष भूल है, क्योंकि प्रतिष्ठा होने के पश्चात कंकण मोचन विधि और सात मंगल गाथाओं को उच्च स्वर में बोलकर अक्षतांजलि के क्षेपण पूर्वक जिनबिम्बों को बधाने की मंगल विधि करनी चाहिए। इन अनुष्ठानों को किये बिना प्रतिष्ठा देवता के विसर्जन का कायोत्सर्ग कैसे संभव हो सकता है? प्रस्तुत प्रतिष्ठा कल्पकार के अतिरिक्त अन्य सभी प्रतिष्ठा कल्पकारों ने कंकण मोचनविधि के पश्चात नन्द्यावर्त और प्रतिष्ठा देवता के विसर्जनार्थ कायोत्सर्ग करने का निर्देश किया है जबकि प्रस्तुत कल्प में कंकण मोचन-विधि का उल्लेख ही नहीं है केवल नन्द्यावर्त और प्रतिष्ठा देवता के विसर्जन हेतु मन्त्रोच्चार पूर्वक 'नन्द्यावर्त और प्रतिष्ठादेवता का विसर्जन करता हूँ' इस तरह उल्लेख किया गया है। इसी के साथ कंकण मोचन का आदेश मात्र है, वहीं अन्य प्रतिष्ठाकल्पों में विधिपूर्वक कंकण मोचन करने के पश्चात नन्द्यावर्त और प्रतिष्ठा देवता को विसर्जित करने का और अन्त में 108 जल कलशों द्वारा जिन बिम्बों के अभिषेक का विधान किया गया है। 9. इस कल्प में प्रतिष्ठा सामग्री में भी अपेक्षाधिक वृद्धि देखी जाती है इसीलिए आधुनिक युग की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा अधिक महंगी हो गई है। जैसे- अन्य प्रतिष्ठा कल्पों की विधि के अनुसार अंजनशलाका युक्त प्रतिष्ठा में 1 दर्पण, 1 चांदी की कटोरी, 1 स्वर्ण की शलाका, 1 दीपक, 1 चामर की जोड़ इत्यादि सीमित सामग्री का उपयोग होता है वहीं प्रस्तुत कल्पविधि के अनुसार 9 दर्पण, 2 चांदी की कटोरी, 1 स्वर्ण की शलाका, 4 दीपक, 4 चामर की जोड़ी 1 सोने की कटोरी, 1 सोने की रकेबी, 1 स्वर्ण का थाल इत्यादि अनेक उपकरणों में और उपकरण संख्या में अभिवृद्धि हुई है, खर्च बढ़े हैं और प्रतिष्ठा के प्रसंग घटे हैं।२।। प्राचीन और अर्वाचीन प्रतिष्ठा ग्रन्थों एवं विधियों का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अध्ययन __कोई भी विधि-विधान प्रारम्भिक अवस्था में जितना सीधा, सरल और अल्प खर्च वाला होता है उतना ही कालान्तर में जटिल, दुर्बोध और महंगा हो जाता है, इस अटल नियम से अंजनशलाका प्रतिष्ठा आदि के विधि-विधान भी
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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