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________________ 564... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन अष्टकवर्ग के दूसरे काव्य के द्वितीय चरण में 'वीरणिमूल' के स्थान पर 'हीरवणी' शब्द का उल्लेख कर स्वअज्ञता का प्रदर्शन किया गया है। 3. सभी प्रतिष्ठाकल्पों में सातवाँ अभिषेक 'मूलिका चूर्ण' का है किन्तु प्रस्तुत प्रतिष्ठा कल्प में सातवें क्रम पर द्वितीय अष्टकवर्ग का उल्लेख है। 4. अन्य प्रतिष्ठा कल्पों में आठवाँ अभिषेक प्रथम अष्टक वर्ग का और दसवाँ अभिषेक ‘सौषधि' का उल्लिखित है किन्तु प्रस्तुत कल्प में अनुक्रम से 'सर्वौषधि' और 'सगन्धौषधि' का नामोल्लेख है। 5. अधिकांश प्रतिष्ठा कल्पों में अठारह अभिषेक होने के पश्चात शुद्ध जल से अष्टोत्तरशत (108) अभिषेक करने का विधान है। पाँचवें प्रतिष्ठा कल्प में दूध, दही, घी, इक्षुरस अथवा शक्कर और सौषधि मिश्रित अभिषेक करने के पश्चात 108 अभिषेक करने का निर्देश किया गया है, परन्तु प्रस्तुत प्रतिष्ठा कल्प में 108 अभिषेक का उल्लेख निर्वाण कल्याणक के प्रसंग पर किया गया है जहाँ तत्सम्बन्धी कोई प्रसंग ही नहीं है। 6. अन्य प्रतिष्ठाकल्पों के साथ प्रस्तुत कल्प का महत्त्वपूर्ण मतभेद कल्याणक की उजवणी के सम्बन्ध में भी है। पहले से सातवें पर्यन्त किसी भी प्रतिष्ठा कल्प में कल्याणक की उजवणी के निमित्त 10 दिनों के कार्यक्रम का उल्लेख नहीं है। चौथे प्रतिष्ठाकल्प में नन्द्यावर्तपूजन और महापूजा आदि प्रकरणों में अनावश्यक विस्तार देखा जाता है। जबकि प्रस्तुत प्रतिष्ठा कल्प में कल्याणकों की उजवणी अथवा तत्सम्बन्धी मंत्र आदि किसी का भी वर्णन नहीं है। 7. इस प्रतिष्ठा कल्प के पूर्ववर्ती सभी प्रतिष्ठा कल्पकारों ने 360 क्रयाणकों की भिन्न-भिन्न पुड़िया अथवा 360 की एक पुड़ी बांधकर जिनबिम्ब के समक्ष रखने का विधान किया है। सप्तधान्य क्षेपण (धान्य स्नान) आदि के विधान ‘अधिवासना' प्रसंग पर ही किये जाते हैं। अंजन विधि के बाद तो जिनबिम्बों की गंध, पुष्प, चन्दन आदि से पूजा करके उनके समक्ष मोदक आदि विविध मिष्ठानों को नैवेद्य के रूप में रखते हैं। ऐसा वर्णन सभी प्रतिष्ठाकल्पों में किया गया है। जबकि प्रस्तुत प्रतिष्ठा कल्प में प्राण प्रतिष्ठा होने के पश्चात जिन बिम्ब के हाथ में 360 क्रयाणकों की पुड़िया रखने का निर्देश किया गया है। इसलिए यह विषय विचारणीय है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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