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________________ प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य ...549 जोड़ने वाला और पौष्टिक माना गया है। 5. उड़द (माष) - यह एक सुप्रसिद्ध पुष्टिकारक द्रव्य है। आयुर्वेद के अनुसार इसे तृप्तिजनक, पौष्टिक, श्रमनिवारक, स्निग्ध एवं शीतल आदि गुणों से युक्त कहा गया है। 6. सरसव- सरसों का पौधा राई की तरह होता है। यह मुख्य रूप से विषनाशक एवं ग्रहपीड़ा को दूर करने में सहायक है। इसका तेल भी बहुउपयोगी है। तान्त्रिक मतानुसार मन को नियंत्रित करने के लिए सरसों का प्रयोग किया जाना चाहिए। इस प्रकार सप्तधान्य का प्रक्षेपण कई दृष्टियों से उपयोगी सिद्ध होता है । प्रतिष्ठा के पश्चात अट्ठाई महोत्सव क्यों ? 1444 ग्रन्थों के रचयिता आचार्य हरिभद्रसूरिजी प्रतिष्ठा सम्पन्न होने के पश्चात उसके अवशिष्ट कर्त्तव्यों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि प्रतिष्ठित जिनबिम्बों की आठ दिन तक पुष्प, बलि आदि के द्वारा पूजा करनी चाहिए तथा स्वयं के धन-वैभव के अनुसार जिन शासन की प्रभावना के उद्देश्य से सभी जीवों को अभय दान देना चाहिए | 25 बड़े शहरों में जिनबिम्ब की प्राण प्रतिष्ठा जैसे महान प्रसंगों पर अट्ठाई महोत्सव अवश्य करना चाहिए जिससे प्रतिष्ठा का सानुबंध होता है। वर्तमान में आठ दिन का महोत्सव प्रतिष्ठा के दूसरे दिन तक समाप्त हो जाती है जबकि मुख्य परिपाटी के अनुसार पूजोत्सव प्रतिष्ठा के बाद होना चाहिए । विधिमार्गप्रपा आदि कर्तृग्रन्थों में तीन दिन या आठ दिन का पूजा महोत्सव प्रतिष्ठा के पश्चात करने का उल्लेख किया है। इस पुण्य प्रसंग पर शक्ति के अनुसार दान करना भी आवश्यक है। इससे जिन शासन की प्रभावना होती है। शासन प्रभावना के फलस्वरूप अन्य धर्मीजन भी भवान्तर में जैन धर्म की प्राप्ति रूप बीज का वपन करते हैं। अभिषेक आदि में उपयोगी जल का संग्रह करते समय कुएँ आदि का पूजन क्यों करते हैं? यह माना जाता है कि तालाब आदि में अधिष्ठायक देवों का वास होता है। तब उनकी आज्ञा के बिना वहाँ का जल कैसे लिया जा सकता है ? अतः उनकी अनुमति प्राप्त करने हेतु पूजन करते हैं इससे वे प्रसन्न होते हैं और हमारे
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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