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________________ 548... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन लौकिक जगत में सप्तधान्य की वृष्टि एक मांगलिक क्रिया है । जैसे धान्य उगने पर खेत - उपवन आदि हरे-भरे हो जाते हैं वैसे ही जिस नगर में तीन लोकों में पूज्य जिनेश्वर परमात्मा विराजमान हुए हैं वह क्षेत्र सुख-समृद्धि एवं धर्म संस्कारों से फलता-फूलता रहे, ऐसे मनोभावों को साकार रूप देने के उद्देश्य से धान्य वृष्टि की जाती है। सप्त धान्य अर्पण का दूसरा प्रयोजन यह है कि इस विशिष्ट अवसर पर प्राणी मात्र के लिए आधारभूत धान्य आदि भी स्वयं को प्रभु चरणों में समर्पित कर तिर्यञ्चगति को सार्थक करते हैं और यह संदेश देते हैं कि अरिहंत परमात्मा के प्रति वसुधा ने सब कुछ न्योछावर कर दिया है इससे तीर्थंकरों का महिमावर्धन होता है। तीसरा हेतु यह कहा जा सकता है कि अरिहंत प्रभु के अनंत गुणों को बधाने के रूप में यह विधि दर्शायी जाती है। प्रक्षेपण के समय अखंड धान्यों का प्रयोग करते हैं जिसके द्वारा महोत्सव की निर्विघ्नता एवं जिनालय की अखंडता के भाव प्रस्तुत किये जाते हैं। सन-लाज आदि सातों धान्य सर्वत्र सुलभता से उपलब्ध हो सकते हैं इसलिए इन्हीं धान्यों का उपयोग करते हैं। सप्तधान्य का सामान्य स्वरूप निम्न प्रकार है 1. शण (सन) – यह धान्य भारत में प्रायः सब जगह सुलभता से पाया जाता है। आयुर्वेद शास्त्रों में इसके प्रत्येक भाग को उपयोगी माना गया है। यह स्वभाव से ठंडा, चर्मरोग में लाभदायी एवं रक्त शोधक गुण वाला है। 2. कुलथी - भारत में पाया जाने वाला यह धान्य गरम, ज्वरनाशक, कृमिनाशक, मज्जावर्धक तथा श्वास, खाँसी, हिचकी, उदररोग, हृदय रोग, नेत्ररोग आदि में लाभदायक है। इसका प्रक्षेपण करने से जिनबिम्बों पर किसी भी प्रकार के प्राकृतिक जीवाणुओं का दुष्प्रभाव हो तो नष्ट हो जाता है और पाषाण की शुद्धि होती है। 3. जौ (जव) - जौ एक मशहूर अनाज है। यह मधुर, शीतल, बुद्धिवर्धक, स्वर संशोधक, बलवृद्धि कारक एवं कान्तिवर्धक है। मांगलिक प्रसंगों पर इसके प्रक्षेपण से प्रतिमा की अपूर्व कान्ति बढ़ती है। 4. कंगु (कांग, कंगुनी) - यह धान्य गरम प्रदेशों में पाया जाता है और बरी के जैसा होता है। इसे स्वभावतः मीठा, तिक्त, मज्जावर्धक, हड्डियों को
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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