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________________ 522... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन आरोपण करते हैं तथा प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्वेत वस्त्र का आच्छादन करते हैं। इस प्रकार अधिवासना और प्रतिष्ठा- इन दोनों अवसरों पर मातृशाटिका का उपयोग होता है। शंका- अंजनशलाका-प्रतिष्ठा सम्बन्धी प्रमुख विधि-विधानों को सम्पन्न करने के लिए प्रायः स्वतन्त्र मण्डपों की रचना की जाती हैं। वहाँ कुंभ स्थापना के निकट क्षेत्रपाल की स्थापना करके उसे तेल - सिंदूर चढ़ाते हैं, यह विधि कितनी उचित है ? समाधान- प्रतिष्ठामंडप में क्षेत्रपाल स्थापना का विधान नहीं है, केवल जिनबिम्बों की दाहिनी ओर उसका मंत्र बोलकर पुष्पों एवं अक्षतों से पूजा करने का उल्लेख है। श्री सकलचन्द्रकृत प्रतिष्ठाकल्प में क्षेत्रपाल का वर्णन करते एक काव्य रचा गया है उसमें अफीम, तेल, गुड़, चंदन, पुष्प एवं धूपादि के भोग को स्वीकार करने की प्रार्थना की गई है 'सिन्दूर' शब्द का संकेत नहीं है । प्रतिष्ठा कल्पों में क्षेत्रपाल का आह्वान और पूजन करने का मंत्र तो प्राप्त होता है किन्तु स्थापना मंत्र नहीं है। गणि कल्याणविजयजी के अनुसार नारियल अथवा पत्थर के ऊपर तेल - सिंदूर चढ़ाकर क्षेत्रपाल की स्थापना करने का निर्देश उनके प्रतिष्ठाकल्प कल्याणकलिका तक किसी भी कल्प में नहीं है अत: तेलसिंदूर चढ़ाने की परम्परा अर्वाचीन है। शंका- यक्ष-यक्षिणी की प्रतिष्ठा के प्रसंग पर कुछ विधिकारक जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के निमित्त भी होम करवाते हैं तो यह क्रिया कहाँ, कितनी उचित है ? इसकी स्पष्टता आवश्यक है। समाधान- जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा में होम क्रिया का प्रश्न ही नहीं उठ सकता। यक्ष-यक्षिणी की स्वतन्त्र रूप से प्रतिष्ठा हो तो भी होम की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि यक्ष-यक्षिणी परमात्मा के सेवक रूप में प्रतिष्ठित होते हैं, विशिष्ट देवी-देवता के रूप में नहीं। दूसरा हेतु यह है कि प्रभु भक्त देवी-देवता अरिहंत परमात्मा के सान्निध्य में अग्नि मुख से भोग्यवस्तु की इच्छा स्वप्न में भी नहीं रखते हैं। आचारदिनकर में होम का निर्देश है जो तान्त्रिक मत का प्रभाव है। इस प्रतिष्ठाकल्प के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रतिष्ठा कल्पकारों ने इस क्रिया को स्वीकार नहीं किया है। आचार्य पादलिप्तसूरि तांत्रिक युग के समर्थ विद्वान थे, फिर भी स्वयं की प्रतिष्ठापद्धति में हवन के नाम तक का भी उल्लेख नहीं किया
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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