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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...521 उल्लेखित किया गया है। जैसा कि मूलपाठ है- 'सहस्रपत्रं कमलं शतपत्रं कुशेशयम्।' 'कण्टका पद्मनाले' इत्यादि वाक्यों में कमल को कांटा कहा गया है उसी प्रकार शतपत्र को गुलाब के आश्रित ही समझना चाहिए, जलकमल के सन्दर्भ में नहीं। शंका- अंजनशलाका और प्राण प्रतिष्ठा एक है या भिन्न-भिन्न? समाधान- अंजनशलाका प्राण प्रतिष्ठा नहीं है। जिन प्रतिमा में प्राण, अपान आदि वायु दशक का न्यास करना प्राण प्रतिष्ठा कहलाता है। वर्तमान की अंजनशलाकाओं में च्यवन कल्याणक की विधि के अन्तर्गत प्राणप्रतिष्ठा की जाती है। अंजनशलाका को प्राणप्रतिष्ठा कहना अज्ञानता है। शंका- खंडित प्रतिमा को विसर्जित करते समय की जाने वाली क्रिया सत्त्व को निस्तेज करने हेतु की जाती है तो यहाँ ‘सत्त्व' शब्द का अभिप्राय क्या है? समाधान- यह क्रिया मंत्र रूप सत्त्व को निस्तेज करने के उद्देश्य से नहीं करते हैं क्योंकि प्रतिमा के खंडित होने पर प्रतिष्ठा का सान्निध्य स्वयं समाप्त हो जाता है। इसलिए जीर्णोद्धार की क्रिया में व्यन्तरादि देवरूप सत्त्व को खींचा जाता है। किसी लाक्षणिक सुन्दर देवप्रतिमा के खंडित होने के पश्चात भूतप्रेतादि की शक्तियों का उसमें अधिष्ठान होना सम्भव है। यदि खंडित प्रतिमा में निम्न जाति के देवों का वास हो जाये और उस प्रतिमा को उसी रूप में भंडारगत कर दिया जाये तो किसी तरह की हानि या उपद्रव होने का भय रहता है अत: अन्य देव के अधिष्ठित सत्त्व को दूर करने के लिए विसर्जन क्रिया करते हैं। शंका- मातृशाटिका (माइसाडी) का अभिप्राय क्या है तथा उसका उपयोग कब और क्यों किया जाता है? . समाधान- लग्न प्रसंग पर कन्या मातृघर (ननिहाल) की साड़ी (वेश) पहनती है उसे मातृशाटिका कहा जाता है। उसी प्रकार के कुसुंबी (लाल) रंग के वस्त्र को प्रतिष्ठा विधिकारों ने 'माइसाड़ी' कहा है। श्रीचन्द्रसूरिकृत सुबोधासामाचारी के अनुसार जिन प्रतिमा की अधिवासना और प्रतिष्ठा इन दो क्रियाओं के समय मातशाटिका का विधान किया जाता है अर्थात मूर्ति के ऊपर माइसाड़ी ओढ़ाते हैं। इस प्रतिष्ठा पद्धति के अनुयायियों ने भी श्रीचन्द्रसूरि के मत का ही अनुसरण किया है। आचार्य पादलिप्तसूरिकृत निर्वाणकलिका के अनुसार केवल अधिवासना के समय ही माइसाड़ी का
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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