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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...491 मध्य में स्वस्तिक रचकर पंचरत्न की पोटली और चाँदी या ताँबे का सिक्का रखें। फिर उसे गाय के घी से भरें। उसके बाद दीपक को फणस में रखकर उसे कंकण डोरे से बांधे। तत्पश्चात मन्त्रोच्चारपूर्वक बत्ती प्रज्वलित करें। दीपक स्थापना कौन करें?- दीपक स्थापना सधवा स्त्रियों के द्वारा की जाती है क्योंकि यह एक मंगलकारी प्रसंग है और सधवा या सुहागिन स्त्रियों को शुभ माना जाता है। यह कार्य विधिकारक एवं योग्य श्रावक के मार्गदर्शन में किया जाता है। दीपक स्थापना के समय क्या भावना करें?- दीपक स्थापना करने वाला लोक कल्याण की भावना के साथ यह स्थापना करें। जैसे दीपक अंधकार को दूर करता है उसी प्रकार मेरा अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो। दीपक की लौ की तरह मेरा जीवन, परिवार और समाज उन्नति और प्रकाश को प्राप्त करें। समस्त देवी-देवता मेरे कार्य में सहयोगी बनें, ऐसी परमार्थ भावनाओं का चिन्तन करना चाहिए। दीपक स्थापना के सम्बन्ध में लौकिक धारणाएँ- जन सामान्य में दीपक प्रज्वलित करने के पीछे यह धारणा है कि इसके प्रकाश के तले इष्ट देवों का निवास होता है। यह क्रिया पूजा-आराधना के रूप में भी की जाती है। जैन धर्म में दीपक पूजा को द्रव्य पूजा के अन्तर्गत स्वीकार किया गया है। इतर परम्पराओं में भी दीपक जलाना पूजा का अंग माना गया है। दीपक की अखण्ड स्थापना के पीछे भी यही मान्यता है कि इसके द्वारा वातावरण पवित्र हो जाने से वहाँ देवी-देवताओं का स्थायी वास होता है क्योंकि देवों का निवास अशुद्ध स्थानों में नहीं होता। जहाँ देवी-देवता हाजिर रहते हैं वहाँ भक्तों की मनोकामना भी शीघ्र फलती है तथा कई अपूर्व चमत्कार भी हो जाते हैं जिससे सामान्य जनता धर्माभिमुख बनती है। तीर्थ स्थलों, प्राचीन मन्दिरों एवं प्रतिष्ठा जैसे श्रेष्ठ उत्सवों में इन्हीं हेतुओं से अखण्ड दीपक रखते हैं। इसकी स्थापना मात्र से 'कार्य निर्विघ्न सम्पन्न होगा, ऐसी दृढ़ मानसिकता का सहज निर्माण होता है। पाटला पूजन विधि का परम्परिक स्वरूप नवग्रह, दशदिक्पाल और अष्टमंगल इन तीनों के चित्रित पट्टों का विधिवत पूजन करना पाटला पूजन कहलाता है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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