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________________ 490... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन वैसे ही मेरी आत्मा भी स्वस्वरूप के उन्मुख होकर अन्यों के लिए भी आत्मज्ञान में सहायक बने। ऐसे उद्देश्यपूर्ण भावनाओं को जागृत करने हेतु यह विधि करते हैं। दीपक की उष्मा से मन्दिर का पर्यावरण विशुद्ध होता है। शास्त्रज्ञों के अनुसार जहाँ दीपक होता है वहाँ पवित्र परमाणुओं का वास होता है। इसी के साथ दीपक की पवित्रता से आकृष्ट होकर देवी-देवता कार्य की सिद्धि में विशेष सहायक बनते हैं। रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार किसी भी अनुष्ठान आदि को प्रारम्भ करने से पूर्व उस कर्म की साक्षी के लिए दीपक की स्थापना अवश्य करनी चाहिए। इससे अग्निदेव कार्य के साक्षी बनते हैं। वैसे सामान्य तौर पर सूर्य की साक्षी मानी जाती है, परन्तु पूजन आदि कार्यों में अग्निदेव को साक्षी मानते हैं। वैदिक मान्यतानुसार सम्यक् वृत्ति वाले देवों को घी का दीपक तथा आसुरी प्रकृति वाले देवताओं को तेल का दीपक प्रिय होता है। वे इससे बहुत जल्दी आकृष्ट होकर वहाँ आ पहुँचते हैं। इस नियम से सिद्ध होता है कि सम्यक्दृष्टि देवी-देवताओं की उपस्थिति हेतु घृत का अखण्ड दीपक जलाकर स्थापित किया जाता है। महोत्सव के मंगलमय और आनन्दमय वातावरण के उद्देश्य से भी दीपक स्थापना की जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से दीपक के द्वारा जो परमाणु वातावरण में फैलते हैं वे वैचारिक निर्मलता में निमित्तभूत बनते हैं। अत: मांगलिक कार्यों में मानसिक तनाव की निवृत्ति हेतु भी दीपक स्थापना की जाती है। दीपक स्थापना कब और कहाँ की जाए?- दीपक स्थापना एक मांगलिक विधान है। इसलिए यह विधि प्रतिष्ठा, दीक्षा महापूजन आदि किसी भी बृहद अनुष्ठान अथवा जाप साधना आदि में की जानी चाहिए। तत्पश्चात कार्य की पूर्णाहुति न हो जब तक दीपक की स्थापना अखण्ड रखनी चाहिए। दीपक स्थापना कहाँ?- दीपक स्थापना कुंभ स्थापना के समीप में दाहिनी तरफ की जाती है, क्योंकि दाहिनी तरफ देवताओं का स्थान माना गया है। दीपक कैसा हो?- अखण्ड दीपक की स्थापना करने के लिए चाँदी, ताँबा या पीतल का दीपक होना चाहिए। दीपक को प्रज्वलित करने से पूर्व उसके
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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