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________________ अध्याय-12 अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन अभिषेक एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है। तीर्थंकर परमात्मा के जन्म, दीक्षा और निर्वाण के समय देवी-देवता गण सुगन्धित जलों से परमात्मा का साक्षात अभिषेक करते हैं। इसी के अनुकरण रूप जिनबिम्बों का प्रक्षाल एवं स्नात्र किया जाता है। अभिषेक की क्रिया बाह्य रूप से तो प्रतिमा को प्रक्षालित करती है किन्तु अंतरंग में अभिषेक कर्ता के मलिन भाव ही प्रक्षालित होते हैं। अभिषेक शब्द 'अभि' उपसर्ग, 'सिंच्' धातु एवं 'घञ्' प्रत्यय से निष्पन्न है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार 'अभि: मुख्यरूपेण सिंचयति इति अभिषेकः' यह व्युत्पत्ति सिद्ध होती है। यहाँ अभि उपसर्ग ऊपर के अर्थ में है। तदनुसार प्रतिमा के ऊपर या प्रतिमा को जल से सिंचित करना अभिषेक कहलाता है। संस्कृत कोश में राज्याभिषेक, प्रतिष्ठा आदि में प्रयुक्त होने वाला पवित्र जल, आचमन, धर्म स्नान आदि के लिए भी अभिषेक शब्द का प्रयोग किया गया है। यहाँ अभिषेक का अभिप्राय जिन प्रतिमा आदि को प्रासुक जल से स्नात्र करवाना है। अठारह अभिषेकों का तात्पर्य भिन्न-भिन्न औषधियों के द्वारा नूतन या प्राचीन जिनबिंबों का अठारह बार प्रक्षालन करना है। अठारह अभिषेक की आवश्यकता क्यों? जैन मन्दिरों में जिनबिम्बों का प्रक्षालन जन्माभिषेक के अनुकरणार्थ किया जाता है। तीर्थंकर परमात्मा के जन्म कल्याणक के समय इन्द्र महाराजा एवं अनगिनत देवी-देवतागण मिलकर प्रभु को मेरुपर्वत पर लेकर जाते हैं। वहाँ विविध तीर्थों आदि के जल से 1008 कलशों से अभिषेक करते हैं। इसी के साथ लोक व्यवहार के पालन हेतु जन्म अशुचि का निवारण भी किया जाता है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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