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________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ... 437 साथ थाली बजाते हुए जिनालय अथवा जिन प्रतिमा की तीन प्रदक्षिणा दें। • फिर जिनेश्वर परमात्मा के समक्ष ध्वजा का थाल लेकर खड़े रहें । उस समय उपस्थित साधु-साध्वीजी भगवन्त ध्वजा पर अभिमन्त्रित वासचूर्ण डालें। • उसके पश्चात 'नमोऽर्हत्' कहकर खरतर परम्परानुसार रचित सत्रह भेदी पूजा की नौंवी ध्वज पूजा पढ़ाएँ तथा तपागच्छ मतानुसार श्री वीरविजयजी महाराजकृत बारहव्रत की पूजा में बारहवीं पौषधव्रत की ध्वज पूजा पढ़ें। वर्तमान में ये पूजाएँ पूरी भी पढ़ाई जाती है। • तदनन्तर धूप दीप प्रगटाकर जल का अभिषेक करें। • फिर केसर से पूजा करके पुष्प चढ़ाएँ। • उसके पश्चात 'ॐ पुण्याहं पुण्याहं' 'ॐ प्रीयन्तां प्रीयन्तां' इन मंगल वाक्यों की बार-बार उच्च स्वर से घोषणा करें। सकल संघ भी स्वर मिलाते हुए घोषणा करें। उस दरम्यान पुरानी ध्वजा उतारकर ध्वजा चढ़ाने वाला गृहपति तीन बार नमस्कार महामन्त्र का स्मरण कर पाटली के सलिए में ध्वजा बाँधकर उसे फहराएँ। उसी समय अभिमन्त्रित कोरा बलिबाकुला और कुसुमांजलि चढ़ाते हुए ध्वजा को बधाएँ। दसों दिशाओं में भी बलि बाकुला का प्रक्षेपण करें। • तत्पश्चात आचार्य / साधु या साध्वीजी महाराज मंगलाचरण पूर्वक बड़ी शांति का पाठ सुनाएँ। • फिर सकल संघ को गुड़-धाना वितरित करें। फिर एक खमासमण देकर अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं कहें। ।। इति ध्वजा चढ़ाने की विधि ।। श्री शान्ति कलश विधि • श्री जिनेश्वर परमात्मा के अभिषेक का स्नात्र जल सोना या चाँदी की मोटी कुंडी में वस्त्र से छानें। फिर सोना या चाँदी की दूसरी बड़ी कुंडी में केसर से स्वस्तिक बनाकर कुण्डी के तलिए पर 'ॐ ह्रीँ नमः' यह मंत्र लिखें। • फिर बाजोठ पर अखंड समचोरस शुद्ध रेशमी वस्त्र बिछाएँ। उसके ऊपर केसर का स्वस्तिक रचकर एवं तीन बार नमस्कार महामंत्र का स्मरण कर मंत्र लिखित कुंडी स्थापित करें। • फिर उस कुंडी में चतुष्कोण सोना या चाँदी की एक मुद्रा, एक सुपारी और सुगन्धित पुष्प डालें। कुंडी के मध्य भाग में और बाहर लटकती रहे इस
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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