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________________ 354... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन ___ ॐ ह्रीं अर्हम् अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं सिद्धास्तर्जनीभ्यां नमः। ॐ ही आचार्या मध्यमाभ्यां नमः। ॐ हीं उपाध्याया अनामिकाभ्यां नमः। ॐ ही सर्वसाधवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं हूँ हूँ हूँ हैं हो हः असिआउसा सम्यग्दर्शनचारित्राणि धर्मः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। जल पूजा- फिर विधिकारक अंकुश मुद्रा दिखाते हुए जल ग्रहण करने का उपक्रम करें। . फिर निम्न मंत्र कहते हुए कूर्म मुद्रा अथवा मत्स्य मुद्रा दिखाकर जल को बाहर निकालकर रखें___ॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणी स्रावय-स्रावय अमृतं में से क्लीं क्लीं ब्लूँ ब्लूँ हाँ हाँ ह्रीं ह्रीं द्रावय-द्रावय हाँ जलदेवी देवा अत्र। • उसके बाद निम्न मंत्र कहते हुए जल देवता की अष्ट प्रकारी पूजा करें___ॐ ह्रीं क्लीं ब्लूँ जल देवताभ्यो नमः, जलं समर्पयामि। • फिर निम्न मंत्र कहते हुए पुष्प, नारियल एवं फल आदि जल पात्र में डालें। ॐ आँ ह्रीं क्रों जलदेवि पूजावलिं गृहाण-गृहाण स्वाहा। • उसके पश्चात चार या आठ कलशों को जल से भरकर उसके समीप मोदक, पूरी आदि नैवेद्य रखते हुए बोलें ॐ ह्रीं ऋषभाजितसंभवाभिनन्दनसुमतिपद्मप्रभ सुपार्श्व चन्द्रप्रभसुविधि शीतलश्रेयांसवासुपूज्य विमलानन्तधर्म- शान्तिकुंथ्वरमल्लिमुनिसुव्रत नमिनेमि पार्श्ववर्धमानास्तीर्थकर परम देवास्तदधिष्ठायका देवाः शान्तिं तुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं ज मङ्गलं कुरु-कुरु पां-पां वां-वां नमः स्वाहा। • तत्पश्चात मंगल गीत गाते हुए गाजे-बाजे के साथ पवित्र वस्त्रधारी नारियों के मस्तक पर उन कलशों को रखें। फिर महोत्सव पूर्वक जिनालय में पहुंचकर तीन प्रदक्षिणा दें। जल भरे कलशों को पवित्र स्थान पर रखें। प्रतिमा की पौंखण क्रिया करने के पश्चात उन्हें मूलगृह में पधरावें। फिर संघ प्रभावना आदि करें। ।। इति जलयात्रा विधि ।।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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