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________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ... 349 उसके पश्चात चारों स्नात्रकार एक सौ आठ तीर्थों के जल एवं औषधि मिश्रित जल से भरे हुए कलश लेकर खड़े रहें। यदि 108 कुओं का जल संभव न हो तो 21 तीर्थों का जल ग्रहण करें। तदनन्तर विधिकारक दश दिक्पाल की स्थापना करें। सर्व प्रथम ॐ ह्रीँ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह आगच्छ-आगच्छ, बलिं गृहाण - गृहाण, उदयमभ्युदयं च कुरु-कुरु स्वाहा- यह मन्त्र बोलकर पूर्व दिशा में इन्द्र की स्थापना करें। फिर पूर्व दिशा के अधिपति देव को बलि बाकुला और लापसी चढ़ाएँ तथा वासक्षेप करें। इसी प्रकार अग्निकोण, दक्षिण दिशा, नैऋत्य कोण, पश्चिम दिशा, वायव्य कोण, उत्तर दिशा, ईशान कोण, ऊर्ध्व दिशा और अधो दिशा में क्रमशः ‘अग्नये’ ‘यमाय’ 'नैऋताय' 'वरुणाय' 'वायवे' 'कुबेराय' 'ईशानाय' ‘ब्रह्मणे' ‘नागाय’– इन दिक्पालों का नामोच्चारण करते हुए पूर्ववत उनकी स्थापना करें। फिर पूर्ववत बलि बाकला और लापसी चढ़ाएँ तथा वासक्षेप करें। तत्पश्चात विधिकारक या स्नात्रकार सूर्याय, चन्द्राय, भौमाय, बुधाय, गुरवे, शुक्राय शनैश्चराय राहवे, केतवे- इन नामों का क्रमशः उच्चारण करते हुए पूर्व मन्त्रवत नवग्रहों की स्थापना करें । फिर स्नात्रकार गुरु मूर्ति या गुरु चरणों के ऊपर निम्न विधि से पाँच अभिषेक करें कुसुमांजलि- निम्न श्लोक कहकर कुसुमाञ्जलि करें। नाना सुगन्धि पुष्पौध- रञ्जिता चञ्चरीक कृत नादा । धूपा मोद विमिश्रा, पतताद् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे || 1. प्रथम सुवर्ण चूर्ण स्नात्र- फिर 'नमोऽर्हत्' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मंत्र बोलें सुपवित्र तीर्थनीरेण संयुतंगन्धपुष्प संमिश्रम् । पततु जलं बिम्बोपरि, सहिरण्यं मंत्र परिपूतम् ।। मन्त्र - ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम गुरुभ्यः पूज्य पादेभ्यो गन्ध पुष्पादि - संमिश्र स्वर्णचूर्णसंयुत जलेन स्नापयामीति स्वाहा । फिर 27 डंका बजाकर गुरु मूर्ति का अभिषेक करें। उसके बाद 18 अभिषेक विधि में निर्दिष्ट मन्त्रों से अभिमन्त्रित चंदन से तिलक लगाएं, पुष्प चढ़ाएं एवं धूप प्रज्वलित करें।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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