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________________ 348... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन दुग्धं चार कलशों में भरें। फिर 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़ें। घृतमायुर्वृद्धिकरं भवति, परं जैन गात्र संपर्कात् । तद्भगवतोऽभिषेके, पातु घृतं घृत समुद्रस्य ।। दुग्धभोधे-रूपाहृतं यत्पुरा सुरवरेन्द्रैः तद् बल पुष्टि निमित्तं भवतु सतां ध्वजदंड अभिषेकात् ।। दधि मंगलाय सततं, दंडाभिषेकोपयोगतो ऽप्यधिकम् भवतु भविनां शिवा - ध्वनि, दधिजलधेराहृतं त्रिदशैः ।। ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते दुग्धादियुत जलेन स्नापयामीति स्वाहा । तदनन्तर 27 डंका बजवायें, ध्वजदंड का अभिषेक करें, तिलक लगायें, पुष्प चढ़ायें और धूप प्रगटायें। तत्पश्चात ध्वजदंड और कलश का शुद्ध जल से प्रक्षाल कर एवं अंगलूंछणा से पोंछकर उस पर बरास का विलेपन करें तथा चाँदी का बरख लगायें। फिर केशर से तिलक करें, केसर के छींटने डालें, पुष्प की माला पहनायें तथा मढल और मरड़ासिंगी बांधे। उसके पश्चात दंड अथवा कलश को उसी दिन या किसी अन्य शुभ दिन में प्रतिष्ठित करना हो तो यह विधि ध्वजदंड प्रतिष्ठा एवं कलश प्रतिष्ठा विधि के अन्तर्गत कही गई है। उसमें वर्णित 18 अभिषेक के बाद की सम्पूर्ण विधि करनी चाहिए। यहाँ पुनरावृत्ति नहीं कर रहे हैं। अठारह अभिषेक के दिन उक्त विधि सम्पन्न होने के पश्चात आरती और मंगल दीपक करें तथा गुरु भगवन्त सकल संघ के साथ मध्यम देववन्दन एवं शान्तिनाथ आदि की आराधनार्थ कायोत्सर्ग और स्तुति बोलें। ।। इति ध्वजदंड - कलश अभिषेक विधि ।। गुरु मूर्ति अभिषेक विधि दादा गुरुदेव अथवा गुरु भगवन्त के स्तूप, प्रतिमा या पादुका की प्रतिष्ठा करनी हो तो उसके शुद्धिकरण के लिए पाँच अभिषेक करना चाहिए। उसकी अभिषेक विधि निम्न प्रकार है- 18 जिस दिन गुरु मूर्ति आदि का अभिषेक करना हो उस दिन चार श्रावक देह शुद्धि पूर्वक पूजा के वस्त्र पहनें। फिर सधवा नारियाँ उनके हाथों में कंकण (मींढल-मरडाशिंग) बाँधे और ललाट पर तिलक करें।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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