SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 266... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन लेते हैं। फिर सभी देव-देवता एवं इन्द्रादि अपने परिवार के साथ भगवान की निर्वाण-भूमि में आते हैं। वहाँ आकर मोक्ष के साक्षात साधन रूप भगवान के पवित्र शरीर को रत्नमयी पालकी पर विराजमान कर नमस्कार करते हैं। तदनन्तर अग्निकुमार जाति के देव अपने मुकुट से उत्पन्न अग्नि द्वारा भगवान के शरीर का अन्तिम संस्कार करते हैं। फिर परमात्मा के देह की भस्म को परमात्मा के समान मान कर उसे अपने-अपने मस्तक पर धारण करते हैं। निर्वाण कल्याणक कौन-कौन मनाते हैं? देवी-देवता, उपस्थित श्रद्धा संपन्न मुनि एवं श्रावक वर्ग मिलकर निर्वाण कल्याणक मनाते हैं। वर्तमान में प्राय: अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा के पश्चात कल्याणकों की पूर्णाहति समझ लेते हैं किन्तु इसी क्रम में परमात्मा का निर्वाण कल्याणक भी मनाया जाता है। निर्वाण कल्याणक के समय क्या भावना करें? निर्वाण कल्याणक महोत्सव के समय प्रत्येक प्रत्यक्षदर्शी को यह सोचना चाहिए कि हे त्रिलोक पूज्य! जिस प्रकार आपने अपनी आत्मा को कर्मों से मुक्त कर सिद्ध-बुद्ध अवस्था को प्राप्त कर लिया है वैसे ही मेरी आत्मा भी शीघ्र ही कर्म बंधन के पाश से मुक्त बने। हे भगवन् ! जिस प्रकार आपका जन्म से लेकर मृत्यु तक का प्रत्येक क्षण कल्याणकारी है वैसे ही मेरा जीवन भी स्व और पर कल्याण में सदा उपयोगी बने। विविध दृष्टियों में पंचकल्याणक महोत्सव की उपादेयता पंचकल्याणक महोत्सव की उपयोगिता क्या है? इस विषय में मंथन किया जाए तो निम्न तथ्य प्रकट होते हैं. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विचार करें तो इस महोत्सव को देखने पर महिलाओं पर विशेष प्रभाव पड़ता हैं। गर्भ अवस्था में माताओं को कैसे रहना, कैसा चिन्तन करना आदि अनेक शिक्षाएँ इसके द्वारा मिलती है। मानसिक स्वप्नों के शुभ-अशुभ प्रभाव आदि के विषय में ज्ञान होता है। जन्म कल्याणक महोत्सव जीवन में आनंद एवं उमंग के भावों को प्रस्फुटित करता हैं तथा अन्तर्मन के आनंदित रहने से शरीर स्वस्थ एवं तंदुरुस्त
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy