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________________ पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ...265 आदि को प्रकट किया हैं वैसे ही हमारा अंतरज्ञान विकसित हो। आपके शुभ परमाणुओं एवं आभामंडल के प्रभाव से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं और परस्पर वैर-विरोध के भाव भी समाप्त हो जाते हैं, वैसे ही मेरे मन में भी किसी के प्रति शत्रु भाव उत्पन्न न हों। __ हे परमात्मन्! जिस प्रकार आपने समभावपूर्वक अनेक उपसर्गों एवं परीषहों को सहन कर आत्मस्वरूप को प्रकट किया है उसी तरह मैं भी प्रतिकूल परिस्थिति में समत्व गुण को विकसित कर पाऊं। जिस प्रकार आपके हृदय में सभी जीवों के लिए करुणा मैत्री एवं वात्सल्य के भाव हैं, वैसे ही मेरे हृदय में समस्त जीव राशि के प्रति दया एवं करूणा के भाव बने रहें। 5. निर्वाण कल्याणक अरिहंत परमात्मा के आयुष्य आदि चार अघाति कर्मों का नष्ट हो जाना निर्वाण कहलाता है। यह स्वयं परमात्मा एवं अन्य जीवों के लिए हितकारी होने से कल्याणक कहा जाता है। निर्वाण कल्याणक रूप कैसे? यह प्रश्न उत्पन्न होना सहज है कि अरिहंत परमात्मा के निर्वाण को कल्याणक या कल्याणकारी क्यों माना गया है? जिनके द्वारा हमें शाश्वत सत्य का बोध हो, ऐसे परमात्मा का वियोग हो जाना कल्याणकारी कैसे हो सकता है? इसका समाधान देते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि शाश्वत नियम के अनुसार जब एक आत्मा सिद्ध गति को प्राप्त करती है उस समय एक संसारी आत्मा अव्यवहार निगोद से निकलती है और उसका विकास क्रम प्रारम्भ हो जाता है। इसलिए परम पुरुषों का मोक्ष गमन भी कल्याणकारी है। दूसरा हेतु यह है कि निर्वाण पद को प्राप्त करने वाली आत्मा अनादिकालीन जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है अत: उस जीव के लिए भी यह परम कल्याणकारी है। इन्हीं प्रयोजनों से निर्वाण को भी कल्याणक माना गया है। निर्वाण कल्याणक कैसे मनाया जाता है? जब तीर्थंकर परमात्मा का निर्वाण होता है उस समय समस्त देव अपनेअपने स्थान पर प्रकट होने वाले चिह्नों से भगवान की निर्वाणोपलब्धि को जान
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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