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________________ 258... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन माँ के गर्भ में जाना न पड़े, जन्म के बाद किसी अन्य माता के उदर से पुनः जन्म लेना न पड़े वह गर्भ और जन्म कल्याण स्वरूप होने से कल्याणक के रूप में मनाये जाते हैं। जन्म कल्याणक मनाते समय क्या भावना करें? जन्म कल्याणक एक उत्तम प्रसंग है। इसकी शुभ भावनाओं से भावित होकर अनेकशः कर्मों की निर्जरा की जा सकती है। इस अवसर्विणी काल खण्ड के पाँचवें आरे में भरत एवं ऐरवत क्षेत्र में रहने वाले मनुष्यों की यह सामर्थ्य तो नहीं कि वे साक्षात तीर्थंकरों के कल्याणकों की उजवणी कर सके, परन्तु स्थापना निक्षेप के माध्यम से भी यदि भावों की उच्चता आ जाए तो साक्षात उजवणी से भी अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है। इस पंच कल्याणक के अनुसरण में परमात्मा की ऋद्धि-वैभव आदि का न तो यथार्थ चित्रण किया जा सकता है और न ही इन्द्रों के जैसी भक्ति का परन्तु ज्ञानियों के अनुसार इस पंच कल्याणक उत्सव का आयोजन करके देवताओं की बराबरी तो नहीं पर अनुसरण तो कर ही सकते हैं। जिस प्रकार बालक अपने खुले हाथों में समुद्र को समाहित करने की चेष्टा करता है उसी प्रकार हमें भी शक्ति के अनुसार इस कार्य को करना चाहिए, शक्ति को छिपाना नहीं चाहिए। जैन धर्म quantity को प्रमुखता नहीं देता, भावों को प्रधानता देता है। यदि भावना की उदारता एवं शक्ति का पूर्ण उपयोग किया जाए तो हमारे लिए यह प्रसंग निःसन्देह कल्याणकारी बनता है। ___परमात्मा के जन्म से विवाह तक के प्रसंगों में हमें उनके समान निस्पृह एवं निरासक्त भाव लाने का प्रयत्न करना चाहिए। जन्मोत्सव के समय सभी देवों के मन में परमात्मा का अभिषेक करने हेतु उतावल होती है परन्तु एक-दूसरे को धक्का-मुक्की कर आगे बढ़ने की भावना नहीं रहती। हमें भी नित्य परमात्मा के अभिषेक में उदारता और विवेक का परिचय देना चाहिए। जिस प्रकार देवी-देवता अपने सभी कार्यों को गौण कर परमात्मा के जन्मोत्सव को प्रमुखता देते हैं वैसे ही हमें अपने व्यापार, गृह कार्य, विवाह, पार्टी आदि को गौण कर परमात्मा के भक्ति प्रसंगो को जीवन में महत्व देना चाहिए।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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