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________________ 256... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन विषय भोग की अभिलाषा होती है और इसीलिए सब कुछ करते हुए भी वे निर्लिप्त रहते हैं। उनके विवाह मंडप की रचना स्वयं इन्द्र करते हैं, क्योंकि यह उनकी आचार मर्यादा है। इन्द्र प्रत्येक कार्य के लिए सर्वप्रथम परमात्मा की आज्ञा ग्रहण करते हैं अथवा विनम्र भावों में उनसे निवेदन करते हैं। जिस प्रकार समुद्र मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता, पर्वत चलायमान नहीं होते वैसे ही उत्तम पुरुष कभी भी उचित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करते और इसीलिए तीर्थङ्कर भगवंत गृहस्थ अवस्था में माता-पिता की इच्छा एवं आज्ञा के अनुसार आचरण करते हुए विवाह करते हैं । जिस प्रकार दुर्बल व्यक्ति चलने के लिए वॉकर का प्रयोग करते हैं वैसे ही सम्यक्तवी जीव के लिए विवाह अविरति के उदय में वॉकर के समान है जिससे वह शीघ्र मुक्त होना चाहते हैं। इस प्रकार परमात्मा के विवाह का प्रसंग भी कर्म बंधन का हेतु न होकर मुक्ति का पैगाम है। पंच कल्याणक महोत्सव में परमात्मा का विवाह प्रसंग मनाते हुए उन्हीं के समान निर्लिप्त अवस्था के प्राप्ति की भावना करनी चाहिए। इस प्रसंग में मोह और भोग के बीच रहकर उस पर विजय प्राप्त करने वाले परमात्मा को आदर्श रूप मानना चाहिए। इस जीव ने संसार में विवाह सम्बन्ध करते - करवाते और उनकी अनुमोदना करते हुए अनंत कर्मों का बंधन किया है, परन्तु परमात्मा के विवाहोत्सव को मनाते हुए उनके स्व- पर कल्याण की भावना को अपने भीतर में उतारकर मुक्ति रमणी को वरण करने के भाव संजोने चाहिए। जन्म कल्याणक क्यों मनाना चाहिए? सामान्यतया यह प्रश्न हो सकता है कि परमात्मा जो कि प्रत्येक जीव के प्रति करुणा एवं मैत्री के भाव रखते हैं। उनके जन्मोत्सव को मनाने हेतु इन्द्रों के द्वारा इतना भव्य उत्सव और इतनी अथाह जल राशि से उनका अभिषेक क्यों? जबकि परमात्मा तो निर्मल है, इन्द्रों के द्वारा यह सब करने से जीव हिंसा नहीं होती ? जन्म कल्याणक एवं अन्य कल्याणकों में देवों के द्वारा उजमणी करना एक शाश्वत आचार है। इतने भव्य रूप में किया जाने वाला आयोजन परमात्मा की भव्यता, उच्चता आदि का प्रतीक है। सामान्य जन को परमात्मा की पूज्यता
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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