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________________ जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...101 सम्पन्न श्रावकों के घर पर रहती थी। इस सम्बन्ध में श्राद्धदिनकृत्य-गाथा 111 की टीका में 'देवगृह भाण्डागारः' शब्द का उल्लेख है वह अत्यन्त मार्मिक है। इससे सिद्ध होता है कि भंडार की प्रथा निकटवर्ती है अति प्राचीन नहीं है। 4. कुछ इतिहासविद् विद्वानों का ऐसा कहना है कि पूर्व काल में जिनालय के गर्भगृह में प्रभु प्रतिमा को विराजमान किया जाता था तथा बाह्य रंगमंडप में व्याख्यान आदि और धार्मिक नृत्य आदि के आयोजन होते थे। प्रेक्षा मंडप में प्रेक्षक वर्ग बैठता था और वसति शब्द से प्रसिद्ध चैत्य विभाग में साधु रहते थे। 5. पूर्वकाल में गृहस्थ श्रावक स्वयं के द्वारा अर्जित राशि से जिनमन्दिर बनवाते थे, आज की परम्परानुसार देवद्रव्य की राशि से जिनालय बंधवाने की प्रवृत्ति नहीं थी। सिद्धाचल, गिरनार, आबू, राणकपुर, कावी आदि में निर्मित जिनालय इसके प्रत्यक्ष साक्षी हैं। देवद्रव्य का उपयोग मन्दिर के जीर्णोद्धार एवं मन्दिर के निर्वाह कार्यों में होना चाहिए, नये मन्दिर के निर्माण में देवद्रव्य का उपयोग कर सकें ऐसा स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। 6. जिनालय का निर्माण करवाने वाले श्रावक परिवार के वंशज स्वयं के पूर्वजों द्वारा बनाये गये मन्दिर में आये जायें और भक्ति करें, किन्तु अन्य जिनालयों के प्रति अवज्ञा या उपेक्षा के भाव रखें तो मिथ्यात्व पुष्ट होता है और उससे संसार बढ़ता है अतएव अपने और दूसरे सभी जिनमन्दिरों के प्रति समान भाव रखने चाहिए। इसी तरह प्रतिमा पूजा, उपकरण आदि के सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिए। जिनालय : एक परिचय जिन मन्दिर में मंडप, गर्भगृह, स्तम्भ, द्वार शाख आदि के अतिरिक्त अन्य कई उपयोगी साधनों का भी निर्माण किया जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार मन्दिर के बाह्य एवं भीतरी परिसर में उनका स्थान कहाँ होना चाहिए ? वह विवरण संक्षेप में इस प्रकार है
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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