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________________ 100... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन नहीं है क्योंकि जहाँ यतना (विवेक) हो वहाँ भाव हिंसा घटित नहीं हो सकती। शास्त्रों में भाव हिंसा के त्याग का ही उपदेश दिया गया है। कारण कि द्रव्य हिंसा को सर्वथा छोड़ना मुश्किल है। जैन साधु-साध्वियों के द्वारा विहार आदि प्रवृत्ति करते समय द्रव्य हिंसा हो जाती है पर उसमें यतना धर्म प्रधान होने से वह कर्मबन्ध का हेतु नहीं बनती है। दूसरा तथ्य यह है कि यतना जनित हिंसा में बृहद् आरम्भ का त्याग हो जाता है। तीसरा कारण यह है कि जिनालय निर्माण आदि कार्यों में तन, मन एवं धन जुटा रहने से उतने समय महारम्भ-महा परिग्रह से छुटकारा मिलता है। इस प्रकार इसमें एक तरफ स्वरूप हिंसा होती है किन्तु दूसरी तरफ हेत हिंसा और अनुबन्ध हिंसा से निवृत्ति हो जाती है अत: जिनालय निर्माण में जो यतना प्रधान हिंसा है वह निवृत्ति मूलक होने से निर्दोष और अहिंसा रूप है।34 जिनमन्दिर निर्माण सम्बन्धी कुछ आवश्यक जानकारी 1. गृहस्थ जिनमन्दिर का निर्माण करवाने के पश्चात उसकी देखभाल और बही खाता आदि का कार्य स्वयं करें, किन्तु प्रेरणा दाता साधु भगवन्त को सुपुर्द न करें। इन कार्यों से मुक्त रहकर साधु-साध्वी चारित्र धर्म की निर्मल साधना कर सकते हैं। चैत्यवास के युग में मुनिजन चैत्य के मालिक होकर जीर्णोद्धार करवाते थे, उसका निषेध किया गया है। साधुओं को धन राशि सुपुर्द कर 'आप जीर्णोद्धार करवा लीजिए' ऐसा श्रावकों को नहीं कहना चाहिए। 2. गृहस्थ को जिनालय का निर्माण करवाते समय (देश-काल के अनुसार) जिनमन्दिर के समीप साधु-श्रावक आदि की आराधना के लिए पौषधशाला या आराधना भवन अवश्य बनवाना चाहिए। 3. कुछ विद्वानों का अभिमत है कि प्राचीन काल में देवद्रव्य आदि के लिए भंडार रखने की प्रथा थी। श्राद्धविधि आदि ग्रन्थों में देवद्रव्य एवं जिनालय की व्यवस्था आदि के सम्बन्ध में जो वर्णन किया गया है वहाँ जिनप्रतिमा के सम्मुख रखे गये फल, नैवेद्य आदि की ही चर्चा की गई है। कहीं नगद राशि का उल्लेख नहीं है। इससे विदित होता है कि देवद्रव्य आदि की व्यवस्था गृहस्थ अपने घर पर ही करते थे। उसके लिए अलग से डिब्बा, थैली आदि रखते थे और उसमें ही नगद राशि श्रद्धा
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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