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________________ जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...93 अच्छे से अवलोकन करें। यदि भूमि में धातु कण दिखते हों तो उन्हें अच्छी तरह से परखें। उनमें भिन्न-भिन्न वर्णवाले धातुओं के कण दिखने पर उनका शुभाशुभ फल इस प्रकार होता है1. यदि स्वर्ण जैसे धातु कण दिखें तो वह भूमि मन्दिर निर्माता के लिए धन वृद्धिकारक माननी चाहिए। 2. यदि ताम्र सदृश धातु कण दिखें तो वह भूमि मन्दिर निर्माता के लिए धन-धान्य वृद्धि कारक और संघ के लिए सर्व सुखकारक होती है। 3. यदि सिन्दूर जैसे धातु कण दिखें तो वह भूमि मन्दिर निर्माता के यश एवं कीर्ति की हानि करती है। 4. यदि अभ्रक जैसे धातु कण दिखें तो वह भूमि मन्दिर निर्माता के लिए - अग्नि भय एवं संताप कारक होती है। 5. यदि कांच या हड्डियों के कण दिखें तो वह भूमि मन्दिर निर्माण के लिए ___सर्वथा अशुभ और अनुपयुक्त समझनी चाहिए। 6. यदि कोयले जैसे पत्थर के काले कण दिखाई दें तो वह राजभय, अकाल मृत्यु का भय एवं निरन्तर चिन्ताएँ उत्पन्न करती हैं।15 यह फलादेश शिल्प शास्त्रियों द्वारा वास्तुज्ञान, स्वानुभव एवं अनुभवी गुरु से परामर्श करके कहा गया है। शल्य शोधन की विधियाँ जिस भूमि पर मन्दिर बनवाने का निश्चय कर लिया गया हो उस भूमि के नीचे हड्डी, चमड़ी, बाल, कोयला आदि हो तो उन्हें शल्य कहा जाता है जो मन्दिर निर्माता एवं संघ-समुदाय के लिए अत्यन्त अनिष्टकारक होता है इसलिए भूमि चयन एवं परीक्षण के उपरान्त शल्य का शोधन करना आवश्यक है। - शास्त्रों में शल्य शोधन की दो विधियाँ दी गई है जो इस प्रकार हैं प्रथम विधि- यह शल्योद्धार शुभ दिन, शुभ लग्न एवं शुभ मुहूर्त में करना चाहिए। सर्वप्रथम जिस भूमि पर मन्दिर का निर्माण करना हो उसके नौ भाग करें। उन नौ भागों में पूर्व दिशा से प्रारम्भ कर क्रमश: ‘ब, क, च, त, ए ह, स, प, ज' अक्षर लिखें। फिर निम्नलिखित रूप से यन्त्र बनाएं। तदनन्तर कुमारी कन्या के तिलक लगाकर और उसके हाथ में श्रीफल देकर उसे पूर्व दिशा के अभिमुख बिठाएं।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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