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________________ 84... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन 6. वही, 9-10 7. भिगु लग्गे बुहु दसमे, दिणयरु लाहे बिहप्फई किंदे। जइ गिहनीमारंभे, ता वरिस सयाउयं हवइ ।। दसमचउत्थे गुरुससि, सणिकुजलाहे अ लच्छि वरिस असी। इग ति चउ छ मुणि कमसो, गुरुसणिभिगुरविबुहम्मि सयं । सुक्कुदए रवितइए, मंगलि छठे अ पंचमे जीवे । इअ लग्गकए गेहे, दो वरिससयाउयं रिद्धी॥ सगिहत्थो ससि लग्गे, गुरु किंदे बलजुओ सुविद्धिकरो। कूरट्ठम-अइअसुहा, सोमा मज्झिम गिहारंभे ॥ इक्केवि गहे णिच्छइ, परगेहि परेसि सत्त-बारसमे। गिहसामिवण्णनाहे, अबले परहत्थि होइ गिहं ।। वास्तुसार प्रकरण, 1/28-32 8. देवशिल्प, पृ. 361 9. वही, पृ. 361 10. वही, पृ. 363 11. प्रतिष्ठापाठ, श्लो. 145 12. वही, श्लो. 147-148 13. प्रतिष्ठा पाठ, श्लो. 146 14. मुहूर्त चक्रावली, पृ. 83 15. वास्तुसार प्रकरण, पृ. 11 16. (क) वास्तुसार प्रकरण, पृ. 213 (ख) भारतीय ज्योतिष, पृ. 506-507 17. प्रतिष्ठापाठ, श्लो. 145 18. वही, 185-186 19. आरम्भ सिद्धि, 10/1,14, 19, 20, 23, 28 20. लग्न शुद्धि के तीनों द्वार द्रष्टव्य हैं। 21. दिन शुद्धि, श्लो. 121-138 22. आचार्य जयसेन प्रतिष्ठापाठ, श्लो. 187-191 23. आचार दिनकर, भा. 2, पृ. 144
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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