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________________ 62... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन जिनालय का माहात्म्य भारतीय संस्कृति तत्त्वत: धार्मिक है। मंदिर और तीर्थ इस संस्कृति के संदेशवाहक हैं। इस विश्व में ऐसी कोई जाति या समाज नहीं, जिनमें मन्दिर की परम्परा और उसके प्रति आस्था न हो। विश्व को अनादिकालीन माना जाता है, क्योंकि कालक्रम के अनुसार उसमें हास और विकास की प्रक्रिया बनती बिगड़ती रहती है किन्तु मंदिर शाश्वत भी होते हैं। जैन ग्रन्थों के अनुसार ऊर्ध्वअधो एवं मध्य लोकों में हजारों की संख्या में शाश्वत चैत्य हैं जो सृष्टि के परिवर्तन के समय भी अक्षुण्ण रहते हैं। ऐसे शाश्वत मंदिरों के दर्शन प्राय: लब्धिधारी मुनि एवं सम्यक्त्वी देवीदेवता ही कर सकते हैं। वर्तमान में सिद्धाचल तीर्थ को शाश्वत माना जाता है। उपाध्याय समयसुंदरजी ने शत्रुजय रास की रचना में स्पष्टत: उल्लिखित किया है कि यह तीर्थ प्रत्येक काल खण्ड में अमुक-अमुक योजन परिमाण रहता है। आशय यह है कि इस तीर्थ का बाह्य भू-भाग (पर्वतीय क्षेत्र) द्रव्य- काल के अनुरूप कम अधिक होता है किन्तु मूल स्वरूप में परिवर्तन नहीं होता। इस प्रकार जिन प्रासाद संसार की अमिट धरोहर है। जैन धर्मावलम्बियों के अतिरिक्त अन्य समाज एवं राष्ट के लिए भी मंदिर मंगलकारी और उपासना स्थल है। शास्त्रकारों ने जिनालयों का महत्त्व एवं उसके प्रभाव को दिग्दर्शित करते हुए कहा है कि जो व्यक्ति अपने पूरे जीवन काल में एक चावल के दाने के बराबर भी जिन प्रतिमा बनावाकर मंदिर में स्थापित करता है वह जन्म-जन्मान्तर के पाप कर्मों का क्षय कर अनन्त सुख का अधिकारी बनता है। अरिहंत प्रभु स्वयं तो अव्याबाध सुख को प्राप्त कर लोकाग्र भाग स्थित सिद्धशिला पर विराजमान हैं लेकिन उनकी प्रतिमा एवं मंदिर के दर्शन से भी असीम सुख की प्राप्ति होती है। अतएव किसी भी परिस्थिति में अपनी शक्ति के अनुरूप यह कार्य जीवन में करने का लक्ष्य रखना चाहिए। प्रासाद मंडन में जिनालय का महत्त्व दर्शाते हुए कहा गया है कि प्रासादाः पूजिता लोके, विश्व कर्मणा भाषितः । चतुर्विंश विभक्तीनां, जिनेन्द्राणां विशेषतः।। चतुर्दिशि चतुर्दाराः, पुरमध्ये सुखावहाः । भ्रमाश्च विभ्रमाश्चैव, प्रशस्ताः सर्वकामदाः।।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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