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________________ जिनालय आदि का मनोवैज्ञानिक एवं प्रासंगिक स्वरूप ...57 2. सकल श्रीसंघ के मंगल के लिए जो चैत्य बनाये जाते हैं, वे मंगल चैत्य कहलाते हैं। इसे एक कथानक द्वारा स्पष्ट करते हैं बात उस समय की है जब मथुरा नगरी अपनी समृद्धि, सौंदर्य, अनुशासन आदि के लिए विश्वविख्यात थी। विजय का तो उसे वरदान ही प्राप्त था, उसे देखने पर ऐसा प्रतीत होता था कि मानो कोई नवयौवना हरे रंग के वस्त्रों को पहनकर अतिथियों का स्वागत कर रही हो । राजा शत्रुदमन की नीतिसम्पन्नता ऐसी थी कि एक बार अनीतिवान व्यक्ति भी अपना मार्ग भूलकर न्याय नीति को अपना लेता था। पुण्य ऐसा था कि प्रकृति स्वयं खाई और समुद्र का परकोटा (Boundary) बनाकर नगर की रक्षा करती थी। नगर की इसी सुंदरता को किसी की ऐसी नजर लगी कि रक्षक प्रकृति ही उसकी भक्षक बन गई। खाई में चारों और किसी ऐसे विष की उत्पत्ति हुई कि मन्त्र-तन्त्र आदि विद्याओं का प्रयोग भी विफल होने लगा। महामारी की वजह से सम्पूर्ण नगरी में लाशों का ढेर सा लग गया। स्वर्ग सी मथुरा नगरी श्मशान से भी भयानक लगने लगी। मांस भक्षी पक्षियों का मानो मेला ही लग गया था। वृद्ध हो या युवा सभी के सामने काल विकराल बनकर अपना आँचल फैलाए खड़ा था। नगरी का कोई पूर्वपुण्य पुनः जागृत हुआ और सौभाग्य से धर्मघोष एवं धर्मरुचि नामक दो चारण लब्धिधर मुनियों का वहाँ पर आगमन हुआ। उनके आने मात्र से नगर में पूर्ववत शान्ति हो गई। मुनि जीवन के सिद्धान्तानुसार दोनों मुनियों ने वहाँ से विहार किया। परन्तु उनके जाते ही महामारी ने पुनः अपना जाल फैला दिया। नगरवासियों को उन्हीं मुनिराजों का स्मरण हो आया और वे उन्हें वापस बुलाकर ले आए तथा मारि निवारण का निवेदन किया। तब चारण मुनियों ने अपने-अपने घर के तोरणद्वार पर अरिहंत भगवान की प्रतिमा को स्थापित कर उनके पूजन का निर्देश दिया जिससे इस भव में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी और विघ्नों का नाश होगा तथा जन्मान्तर में कल्याण की भूमिका (नींव) स्थापित होगी। नगरवासियों ने ऐसा ही किया जिससे सम्पूर्ण प्रदेश में शान्ति एवं समाधि की स्थापना हुई। इस प्रकार मथुरा के नगर वासियों ने सद्गुरु के आदेश से मंगल बिम्बों की स्थापना कर पूजा की, वे मंगल चैत्य कहलाते हैं। जैसा कि कहा है
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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