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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक पक्षों का मूल्यपरक विश्लेषण ...49 सकता है। कई बार बोलियाँ अधिक होने पर तत्र उपस्थित गुरु भगवंत एवं श्रीसंघ की सम्मति से रात्रि भोजन त्याग, अभक्ष्य त्याग, सामायिक पूजा आदि नियमों को भी चढ़ावे के रूप में बोला जाता है, जिससे संघ का आचार पक्ष उन्नत बने एवं आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोग भी परमात्म भक्ति का लाभ ले सकें। कुछ स्थानों पर सम्पूर्ण पूजन का एक ही चढ़ावा बोला जाता है तो कहींकहीं पर अलग-अलग विभाग की बोलियाँ होती है। वर्तमान में एक नियत नकरा रखने का प्रचलन भी कहीं-कहीं देखा जाता है। यह सब बोलियाँ देवद्रव्य की गिनी जाती हैं। यदि संघ में साधारण की आवक कम हो और देव द्रव्य से साधारण में उधार लेना पड़े तो इन बोलियों में से पूजन उपयोगी द्रव्य का खर्च किया जा सकता है । पर अधिक श्रेयस्कर यह है कि महोत्सव पर देवद्रव्य की निधि न खर्चनी पड़े। पूजन उत्तम द्रव्य से ही होना चाहिए। लाखों रुपये के इधर-उधर के खर्च करने वाले जब पूजन में तुच्छ द्रव्यों से काम चला लेते हैं तो बड़ा दुःख होता है । इस विषय में सुज्ञ श्रावक वर्ग से यही निवेदन है कि शास्त्रीय तरीकों से बने हुए द्रव्यों की प्राप्ति के लिये एक विश्वसनीय स्थान बनाना चाहिए जहाँ से भारत भर के सभी मंदिर वालों को सम्पूर्ण शुद्ध सामग्री प्राप्त हो सके। शास्त्रों में कहा गया है कि तुच्छ द्रव्यों से पूजा करने से नीच गोत्रकर्म का बंध होता है। रथयात्रा की बोलियाँ अंजनशलाका महोत्सव में पाँच कल्याणक मनाये जाते हैं। कल्याणक के विधान एवं उजवणी के बाद में रथयात्रा निकालना जरूरी होता है, पर दीक्षा कल्याणक में प्रथम रथयात्रा होती है बाद में उजवणी होती है। इस प्रकार पाँच कल्याणक की पृथक-पृथक रथयात्रा निकाली जा सकती है । पर बहुधा निर्वाण कल्याणक की यात्रा निकालने का समय नहीं रहता है, अतः चार रथयात्रा चारों कल्याणक की और एक प्रारम्भ में शांतिस्नात्र के लिये जल लाने हेतु जलयात्रा भी निकाली जाती है। ये पाँचों रथयात्राएँ बड़ी शान से निकालनी चाहिए। जिस देश में जिनेश्वर भगवंत की प्रतिमा की प्रतिष्ठा अच्छी तरह से होती है, उस देश का राजा सैन्य शक्ति से वृद्धि पाता है, उनका यश समस्त दिशाओं में फैल जाता है एवं उनका पुण्य विस्तृत होता हुआ वृद्धिंगत होता है । विशिष्ट भावों से की गई जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा उस देश के समस्त
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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