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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक पक्षों का मूल्यपरक विश्लेषण ...47 के ऊपर कुसुंबी वस्त्र आच्छादन, राज्याभिषेक और दीक्षा कल्याणक विधि की जाती है। ___ दसवें दिन अधिवासना विधि के अन्तर्गत नवग्रह, दश दिक्पाल पूजन, शान्ति बलि प्रक्षेप, आत्मरक्षा-सकलीकरण आदि तथा परमेष्ठी मुद्रा से जिन आह्वान, अधिष्ठायक देव-देवियों का आह्वान एवं स्थापना विधि की जाती है। इसी दिन अंजनशलाका विधि, केवलज्ञान कल्याणक महोत्सव एवं निर्वाण कल्याणक उत्सव की क्रिया भी की जाती है। अंजन विधि के अन्तर्गत दर्पण दर्शन, जिनबिम्ब के दाहिने कर्ण में मन्त्र न्यास, दाहिने कर्ण पर चन्दन विलेपन, सर्वांग स्पर्श, दधि पात्र का दर्शन आदि क्रियाएँ मध्य रात्रि में होती हैं। केवलज्ञान एवं निर्वाण कल्याणक विधि के अन्तर्भूत समवसरण की स्थापना, 360 क्रयाणकों की पुटिका अर्पण, पुष्प वृष्टि, देववंदन, नव अंगपूजन, 108 अभिषेक, नैवेद्य अर्पण, धर्मदेशना आदि क्रियाएँ की जाती है। ___ ग्यारहवें दिन मूलनायक आदि जिन बिम्बों की गर्भ गृह में प्रतिष्ठा करते हैं। मध्याह्न में बृहत्शांति स्नात्र महापूजन किया जाता है। तदनन्तर शुभ वेला में नंद्यावर्त्त, प्रतिष्ठा देवता एवं सर्व देवता का विसर्जन करके कंकण मोचन किया जाता है। कंकण मोचन कुछ दिन पश्चात भी किया जा सकता है। बारहवें दिन द्वारोद्घाटन विधि सम्पन्न करते हैं। यहाँ ध्यातव्य है कि कलशारोपण एवं ध्वजारोहण की प्रतिष्ठा बिम्ब प्रतिष्ठा के साथ ही की जाती है। प्रतिष्ठा सम्बन्धी बोलियों का स्पष्टीकरण जैन धर्म में दीक्षा, प्रतिष्ठा, पदारोहण आदि के अवसर पर बोलियाँ बोलने की परम्परा प्राचीन है। यहाँ चढ़ावाँ, उछामणी, घी आदि बोली के समानार्थक शब्द हैं। भिन्न-भिन्न प्रसंगों पर चढ़ावे के उद्देश्य भी पृथक-पृथक होते हैं। सामान्यतया संस्था की आमदनी का सरल, सुयोजित एवं संस्कारमय क्रम है। प्रतिष्ठा की बोलियाँ प्रतिष्ठा की प्रत्येक बोली देव द्रव्य की कहलाती है। इसकी विशेषता यह है कि ऐसी बोलियों से अच्छी आमदनी होती है। राजस्थान में प्राय: यह रिवाज हो चुका है कि वह बोलियाँ पूज्य गुरुदेव के सान्निध्य में प्रतिष्ठा के पहले दिन या रविवार के दिन रखने से अच्छी होती है। प्रतिष्ठा की बोलियाँ बड़ी होने से इनके लिये जाजम बिछाई जाती है। जाजम बिछाने की भी बोली होती है पर
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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