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________________ 38... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन आमन्त्रित करना चाहिए। लगभग 100 वर्ष पहले तक प्रतिष्ठा महोत्सवादि के पुण्य प्रसंग पर परिमित शब्दों में सारभूत अर्थ वाली निमन्त्रण पत्रिका लिखी जाती थी, परन्तु विगत 40 वर्ष से शनैः शनैः आडम्बर युक्त पत्रिकाएँ प्रकाशित होने लगी हैं। आजकल प्रतिष्ठा की आमंत्रण पत्रिका डेढ़ हाथ लम्बी एवं एक हाथ चौड़ी न हो तो आम जनता उस प्रतिष्ठा को सामान्य मानती है तथा पत्रिका में आकर्षक रंग आदि न हों तो वह कई लोगों को पसंद तक नहीं आती है। पत्रिका सम्बन्धी यह परिवर्तन विचारणीय है। सच तो यह है कि पत्रिका को चित्ताकर्षक बनाने मात्र से उसका मूल्य नहीं बढ़ जाता। पत्रिका में विशेष आमन्त्रण के रूप में हस्ताक्षर करने का भी रिवाज है। किसी स्थान पर नगर सेठ के द्वारा तो किसी जगह संघ के अग्रगण्यों द्वारा हस्ताक्षर करने का भी चढ़ावा बोला जाता है, उससे लाखों की आवक होती है। अनेक नगरों में प्रतिष्ठा दिन की नवकारसी (फले चुंदडी) का लाभ लेने वाला गृहस्थ आमंत्रण पत्रिका में हस्ताक्षर करता है। इसमें भी यह विवेक रखना जरूरी है कि हस्ताक्षर करने वाला श्रावक प्रसिद्ध और संघ का अग्रगण्य होना चाहिए। वर्तमान में हस्ताक्षर की इस पद्धति को 'जय जिनेन्द्र' के रूप में दर्शाया जाता है। श्री संघ निमन्त्रण पत्रिका लिखने का मूल ध्येय यह था कि अन्य गाँव एवं नगर के संघ इस महामांगलिक महोत्सव में सम्मिलित होकर पुण्यानुबन्धी पुण्य का उपार्जन करें। परन्तु आजकल की श्रीसंघ पत्रिका में प्राय: लाभार्थी परिवारों के नाम और उनके फोटों के ही दर्शन होते हैं। आधुनिक युग की निमन्त्रण पत्रिका में मूलभूत उद्देश्य की गन्ध ही समाप्त हो गई है। श्रीसंघ को निमन्त्रित एवं उनकी भक्ति करने से गृहस्थ के वार्षिक कर्तव्य का पालन होता है, समस्त संघाधिकारियों में पारस्परिक सद्भाव एवं समन्वय वृत्ति का वर्धन होने से जिन धर्म की महिमा बढ़ती है, पूजादि अनुष्ठानों में उत्साहवर्द्धन होता है, धर्म आराधनों में मार्गदर्शन प्राप्त होता है तथा अनेकों के सहयोग से कठिन कार्य भी सहज हो जाते हैं। इस तरह प्रतिष्ठा उत्सव के पूर्व कृत्यों में छठवाँ-सातवाँ कर्तव्य कई दृष्टियों से अनुकरणीय है। 8. औषधियों को चूर्ण करने वाली स्त्रियाँ- प्रतिष्ठा उत्सव प्रारम्भ होने से पहले ही औषधियाँ घोटने वाली एवं पौंखणा आदि का कार्य करने वाली
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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