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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक पक्षों का मूल्यपरक विश्लेषण ...37 चाहिए और उसके अनुसार ही संघ समुदाय एकत्रित करना चाहिए। प्रतिष्ठा का महत्त्व खाने-पीने या मौज-शोक करने में नहीं है प्रत्युत उसके क्रिया विधान की शुद्धता में और मानसिक उल्लास में है। इसलिए पहले से ही शक्ति का अनुमान कर खर्च करना चाहिए जिससे अधिक व्यय होने के कारण मानसिक प्रसन्नता खण्डित न हो। - यदि प्रतिष्ठा का आयोजन स्थानीय संघ अथवा सकल संघ कर रहा हो और संघ भक्ति के निमित्त साधर्मिक वात्सल्य अथवा नवकारसी करवाने वाले कई व्यक्ति हों तो शुभ मुहूर्त में चढ़ावा बोलकर आदेश देना चाहिए। ___ मारवाड़ में नवकारसी के निमित्त जो चढ़ावे बोले जाते थे उस समय नवकारसी का आदेश लेने वाला गृहस्थ परिवार ही नवकारसी का पूरा खर्च देता था, परन्तु कालान्तर में अन्य प्रदेशों की तरह वहाँ भी बोली गई रकम में से ही नवकारसी का खर्च किया जाता है। इस स्थिति में चढ़ावें की रकम नवकारसी खर्च के जितनी भी आना संभव न हो तो एक निश्चित संख्या में रकम का निर्णय कर वहाँ से चढ़ावा बोलने की शुरुआत करनी चाहिए। जिससे साधारण खाता में कमी न हो और नवकारसियों के सहयोग से प्रतिष्ठा के आयोजन कर्ताओं को अधिक खर्च भी नहीं करना पड़े। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि महोत्सव में भिन्न-भिन्न नगरों से पधारे हुए पुण्यवन्त साधर्मिकों और स्थानीय साधर्मिकों की भक्ति करने हेतु उन्हें अभक्ष्य, अनन्तकाय और रात्रिभोजन आदि का दोष न लगे, ऐसे जैनाचार की परिपाटी के अनुसार साधर्मी भक्ति का आयोजन करना चाहिए। पूर्वकाल में साधर्मिक वात्सल्य में हरी सब्जियों का उपयोग नहीं होता था। आजकल जीव रक्षा का विवेक नहींवत रखा जाता है। प्राचीनकाल में धार्मिक आयोजनों में भोजन करने के पश्चात थाली-कटोरी को राख से मांजकर उन्हें सूखे वस्त्रों से पोंछा जाता था, जिससे अप्काय जीवों की विराधना के महापाप से बच जाते थे। आज आधुनिक साधनों के जाल में इतने फंस गए हैं कि पाप कार्यों से छूटने के भाव विस्मृत होते जा रहे हैं। 7. श्रीसंघ निमन्त्रण पत्रिका- प्रतिष्ठा उत्सव की शोभा बढ़ाने एवं जिनशासन की प्रभावना करने हेतु विभिन्न देशों और नगरों के स्थानीय संघों को
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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