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________________ 20... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... ___ वर्तमान अपेक्षा से यदि चिंतन करें तो इसमें उल्लिखित अधिकांश पदार्थों का वर्तमान में प्रयोग ही नहीं किया जाता। यह पूजा वर्तमान में प्रचलित भी नहीं है परन्तु महापूजनों में आयोजित 108 पार्श्व पद्मावती पूजन आदि में 108 बार पूजा होने से उसे एक प्रकार की 108 प्रकारी पूजा कह सकते हैं। 1008 प्रकारी पूजा __भगवान ऋषभदेव के जन्माभिषेक का वर्णन करते हुए जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति में इन्द्र आदि देवताओं द्वारा मनाए गए भव्य जन्मोत्सव का वर्णन है।87 उस समय इन्द्र आदि देवी-देवताओं के द्वारा अष्टोत्तरसहस्र अर्थात 1008 की संख्या में समस्त सामग्री प्रयुक्त की जाती है। तदनुसार 1008 स्वर्ण कलश, चाँदी के कलश, मणियुक्त कलश, सोने-चाँदी के कलश, मणियुक्त स्वर्ण कलश, मणियुक्त चाँदी के कलश, सोने-चाँदी के मणिमय कलश, मिट्टी के कलश, चंदन के कलश, श्रृंगार (नाली वाले) कलश, आदर्श (दर्पण), थाल, पात्रि (कटोरी), सुप्रतिष्ठक, विचित्र रत्नों के करण्डक (पेटी या मंजूषा), करंडक, पुष्पचंगेरी (फूल छाब) आदि। इसी के साथ सूर्याभदेवता द्वारा की गई पूजा में सर्व चंगेरी (समस्त पूजा सामग्री रखने का पात्र), सर्वपटलक (पूजा सामग्री ढकने का ढक्कन), सिंहासन छत्र, चामर, तैलसमुद्गक (तैल का दीपक या पात्र) सर्वपक्षसमुद्गक, पंखी, धूपदानी, क्षीरोद, समुद्र से उत्पन्न, पद्म, पत्र कमल आदि 1008 की संख्या में ग्रहण किए जाते हैं। इसी प्रकार विविध नदियों, समुद्रों, वनों से विविध सामग्री जैसे- तुअरे पदार्थ, सर्वोषधि, सिद्धार्थक, जल, गंध, माल्य आदि ग्रहण करते हैं। इस तरह अनेक प्रकार की सामग्री 10081008 की संख्या में एकत्रित कर परमात्मा का जन्माभिषेक किया जाता है। इसी को 1008 प्रकारी पूजा कहा गया है। उक्त वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि जैन ग्रन्थों में विविध स्थानों पर विविध प्रकार की पूजाओं के उल्लेख प्राप्त होते हैं। इनमें से कई पूजाएँ ऐसी हैं जो सभी में Common (समान) हैं या जिनका समावेश हर पूजा में अवश्य रूप से होता है। जैसेकि पुष्प पूजा या अक्षत पूजा आदि, तो कई आचार्यों ने कुछ नई-नई पूजाओं का भी समावेश किया है। यह समस्त परिवर्तन अधिकांशत: देश-काल-परिस्थिति के अनुसार हुए होंगे ऐसा प्रतीत होता है। यहाँ प्रश्न हो सकता है कि पूजा करते समय 108 प्रकार की सामग्री का
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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