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________________ जिनपूजा का सैद्धान्तिक स्वरूप एवं उसके प्रकार......19 स्नपन, वस्त्र, चन्दन, पुष्प, वास, चूआ चूर्ण, पुष्पमाला, अष्टमंगल आलेखन, दीप, धूप, अक्षत, ध्वज, चामर, छत्र, मुकुट, दर्पण, नैवेद्य, फल, नृत्य एवं वाजिंत्र।84 __आचारोपदेश एवं पूजा प्रकरण में क्रमान्तर अवश्य है फिर भी एक दो पूजाओं को छोड़कर शेष पूजाएँ समान है। पूजा प्रकरण में वर्णित वस्त्र एवं स्तुति पूजा के स्थान पर इसमें ध्वज एवं ध्वनि पूजा का वर्णन है। सकलचंद्रजी एवं उमास्वाति वर्णित पूजाओं में काफी मतभेद दृष्टिगत होते हैं। सकलचंद्रजी ने पत्र, पूग, वारि, स्तुति और कोशवृद्धि पूजा का वर्णन नहीं किया है। इसी के साथ क्रम में भी भेद है। वर्तमान समय में इक्कीस प्रकारी पूजा के रूप में तो इसका प्रचलन नहीं देखा. जाता यद्यपि संकलचंद्रजी द्वारा वर्णित अधिकांश पूजाओं का सेवन नित्य पूजा में किया जाता है। 108 प्रकारी पूजा आगम साहित्य का यदि अवलोकन करें तो वहाँ 108 प्रकार से प्रभु पूजा करने का भी वर्णन प्राप्त होता है। ज्ञाताधर्मकथासूत्र में स्वर्ग में स्थित मणिपीठिका के 'देवच्छन्दक' पर स्थापित शाश्वत प्रतिमाओं के आगे विविध सामग्रियों को 108...108 की संख्या में रखने का विधान है। इनमें 108 घंट, चंदन, कलश, श्रृंगार (नाली वाले) कलश, दर्पण, थाल, कटोरियाँ, प्रतिष्ठक, मन गुटिका, वातकरणडक, हयकंठ से वृषभ कंठ तक के आभूषण, फूल की छाब मोरपंख से बनी हुई छाब (लोमहस्तक चंगेरी), पुष्पपटलक (छाब के ढक्कन) तैल समुद्गक (तेल की डिब्बी) से लेकर धूपदान आदि तक की समस्त सामग्री 108-108 रखी जाती है।85 जिन पूजा विधि संग्रह में उल्लेखित संग्रहणी गाथाओं में भी इन्हीं पदार्थों का नाम निर्देश किया गया है। जैसे- चंदनकलश, श्रृंगारक, दर्पण, थाल, कटोरा, सुप्रतिष्ठक, मनगुटिका, वातकरक, चित्ररत्न करंडक (विचित्र रत्नयुक्त मंजूषा), हयकंठक, गजकंठक, नरकंठक, चंगेरी पटलक (छाब का ढक्कन), सिंहासन, छत्र, चामर, समुद्गक आदि सब पदार्थ मूर्तियों के आगे रखते हैं।86 यहाँ 108-108 विविध प्रकार के पदार्थों से पूजा करने के कारण इसे 108 प्रकारी पूजा कहा गया है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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