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________________ 2... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... सत्कार करना पूजा है इसलिए पूजा शब्द का प्रयोग सत्कार अर्थ में हुआ है। __महापुराण में याग, यज्ञ, क्रतु, पूजा, सपर्या, इज्या, अध्वर, मख और मह आदि शब्दों का उल्लेख पूजा के पर्यायवाची के रूप में किया गया है।। सामान्यतया पूज्य जनों का आदर-सम्मान, सत्कार आदि करना पजा है। पूजा की शास्त्रीय परिभाषाएँ विभिन्न आचार्यों एवं ग्रन्थकारों ने पूजा की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ बताई हैं। स्थानांगसूत्र में पुष्प आदि से अर्चना करने को पूजा कहा गया है। आवश्यक नियुक्ति में मन, वचन, काया की प्रशस्त चेष्टा पूर्वक पूजा करने को पूजन कहा गया है। षोड़शक प्रकरण के अन्तर्गत बताया गया है कि स्व वैभव के अनुसार प्रतिदिन नियत समय पर स्नान, विलेपन, सुगन्धी पुष्प, धूप आदि के द्वारा मोक्षदायक, देवेन्द्र पूजित एवं हितकामियों के लिए पूज्य ऐसे वीतरागी परमात्मा का भक्ति भावों से युत होकर पूजन करना पूजा है। पंचाशक प्रकरण के अनुसार शास्त्रोक्त काल में पवित्र होकर विशिष्ट पुष्प आदि एवं उत्तम स्तोत्र आदि से जिनेश्वर का सत्कार करना पूजा है। कुछ आचार्यों के अनुसार गायत्री आदि पाठपूर्वक सन्ध्या अर्चना करना पूजा है। अष्टाध्यायी में गन्ध, माला, वस्त्र, पात्र, अन्न, पान आदि के प्रदान पूर्वक किए जाने वाले सत्कार को पूजा कहा गया है।10 प्रवचनसारोद्धार की टीका में भी यथोचित पुष्प, फल, आहार, वस्त्र आदि के द्वारा उपचार करने को पूजा कहा है।11 यदि सार रूप में कहें तो पूज्य जनों का आदर-सत्कार करना, उन्हें उत्तम द्रव्य अर्पित करना, उनके उपकारों का स्मरण करना पूजा है। पूजा के विभिन्न प्रकार आगमकाल से अब तक उपलब्ध जिनपूजा सम्बन्धी उल्लेखों एवं परिवर्तनों के आधार पर जिनपूजा के अनेक भेद-प्रभेद परिलक्षित होते हैं। शास्त्रकारों ने विविध अपेक्षाओं से जिनपूजा के एक, दो, तीन, चार-पाँच, छ:, आठ, चौदह, सत्तरह, इक्कीस, एक सौ आठ, एक हजार आठ आदि अनेक भेदों की चर्चा की है। यहाँ संक्षिप्त में उनका सारभूत विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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