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________________ xivi... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... भावोल्लास के साथ किए गए हों। अन्यथा वंदन-पूजन आदि की क्रियाएँ मात्र एक गड़रिया प्रवाह रूप बनकर रह जाती है। यदि आज की जीवन शैली एवं आधुनिक विचारधारा की अपेक्षा से सोचा जाए तो अधिकांश वर्ग को यह क्रियाएँ अनावश्यक एवं सारहीन प्रतीत होती है। एक वर्ग ऐसा भी है जो मात्र परम्परा निर्वाह या प्रवाह के अनुकरण रूप यह सभी क्रियाएँ करता है। उसके पीछे रहे सुपरिणाम या उनके तथ्यों से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें छोटी-छोटी बात का logic चाहिए। तो कुछ ऐसे भी हैं जो अपने विचारों के आग्रह या रुढ़िवादिता को छोड़ना ही नहीं चाहते। बहुत कम ऐसे लोग दिखाई देते हैं जो प्रत्येक विधि एवं क्रिया का आशय समझते हुए उसे शुद्ध रीति से करना चाहते हैं। वर्तमान में अधिकांश लोग हर क्रिया का Short cut और Easy Way चाहते हैं। वे धर्म के अनुसार ढ़लना नहीं चाहते अपितु धर्म को अपने अनुसार ढ़ालना चाहते हैं। परंतु इस प्रकार अपवाद मार्गों को धारण करने से कभी भी लक्ष्य की संसिद्धि नहीं हो सकती। यदि मंजिल को पाना है तो कठिन मार्ग पर तो चलना ही होगा, मार्ग में आ रही बाधाओं को पार करना ही होगा। यदि जैन समाज की वर्तमान परिस्थितियों का अन्वेषण करें तो आज का अधिकांश युवा वर्ग धर्म क्रियाओं को Boring, Impractical, Unintresting और Outdated मानता है। No time busy life का वाक्य तो प्राय: सभी के रटा हुआ है। कई भ्रान्त मान्यताएँ एवं परम्पराएँ भी जिनपूजा विधि में प्रविष्ट हो चुकी हैं। कुछ क्रियाएँ अति में बढ़ गई है तो कई मूल विधियाँ प्राय: विलुप्त होने की कगार पर है। इन भयावह परिस्थितियों में जिनपूजा के प्रति जागरूक होना एवं तदविषयक मर्मों को हृदयंगम करना परम आवश्यक है। आज शास्त्रोक्त त्रिकालपूजा का प्रचलन नहीवत रह गया है, वहीं श्रावक वर्ग ने अपनी सुविधा हेतु सूर्योदय से पूर्व प्रक्षाल, कृत्रिम (Artificial) द्रव्यों के प्रयोग, Lighting आदि को बढ़ावा दिया है जो मंदिरों के वातावरण एवं प्रतिमाओं के प्रभाव को दूषित एवं निस्तेज कर रहा है। पूजा सम्बन्धी द्रव्य एकत्रित करने की विधि से भी प्राय: श्रावक वर्ग अनभिज्ञ हैं। आंगी आदि का प्रचलन भी अति में बढ़ गया है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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