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________________ श्रुत सागर से निकले समाधान के मोती ...385 परमात्मा के दर्शन तो एक बार में भी मंगलकारी हो सकते हैं । परंतु हमारा मन और जीवन पूरा दिन भौतिक जगत में उलझा रहता है। भौतिकता आदि वैभाविक संस्कार आत्मा पर अनंतकाल से जमे हुए हैं। उन्हें हटाने के लिए बार-बार उन पर चोट करना आवश्यक है। परमात्मा के त्रिकाल दर्शन आत्मा की शुद्ध अवस्था का बार-बार ध्यान करवाते हैं। डॉक्टर की दवाई दिन में तीन बार लेने पर जिस तरह रोग का शीघ्र निदान करती है, वैसे ही परमात्मा के त्रिकाल दर्शन जन्म- जरा - मृत्यु रूपी रोग का निवारण कर शीघ्र आत्मा को मोक्ष नगरी में विश्राम करवाती हैं। शंका- अष्टमी-चौदस आदि को हरी सब्जी, फल आदि क्यों नहीं खानी चाहिए? जब खा नहीं सकते तो परमात्मा को कैसे चढ़ा सकते हैं ? समाधान- अष्टमी चौदस आदि पर्व तिथियों के दिन हरी सब्जियों का त्याग आध्यात्मिक एवं शारीरिक दोनों दृष्टियों से लाभदायक है। आध्यात्मिक दृष्टि से पर्व तिथियों को विशेष रूप से आयुष्य का बंधन होता है। इसका एक तथ्य यह भी है कि आयुष्य का बंधन जिंदगी के 2/3 भाग में होता है। जैन दर्शन में 2,5,8,11,14 ये मुख्य पर्व तिथियाँ मानी गई हैं। यह सब तिथियाँ भी 2/3 भाग में ही आती हैं जैसे दूज के बाद तीज और चोथ जाने पर पंचमी, फिर दो दिन बीतने के पश्चात अष्टमी, फिर दो दिन के बाद ग्यारस इस तरह अन्य पर्व तिथियों के विषय में समझना चाहिए। शारीरिक दृष्टि से अष्टमी- चौदस आदि के दिन सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी एक ही रेखा में होते हैं। इस वजह से उस दिन समुद्र की लहरों में विशेष उफान आता है। हमारे शरीर में भी 70% जल तत्त्व है । हरी सब्जियाँ शरीर में जल के प्रमाण को अधिक बढ़ाती है। इससे मन में चंचलता बढ़ती है और साथ ही साथ क्रोध आदि कषाय एवं रोग भी बढ़ते हैं। पर्व तिथि के दिन कम से कम जीवों की हिंसा करना भी इसका एक मुख्य उद्देश्य है। इसी कारण जैनाचार्यों ने पर्वतिथि में हरी का निषेध किया है । परन्तु कहीं भी मंदिर में फल आदि चढ़ाने का निषेध प्राप्त नहीं होता। नहीं खाने के पीछे मुख्य रूप से हिंसा एवं आसक्ति त्याग की भावना रही हुई है। वहीं परमात्म के दरबार में चढ़ाते हुए उन्हें अभयदान देने एवं उनके प्रति आसक्ति को न्यून करने के भावों का वर्धन ही होता है। एक बार जिन फलों को परमात्मा के चरणों
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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