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________________ 348... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... शंका- ज्ञान द्रव्य का उपयोग किन-किन क्षेत्रों में हो सकता है? समाधान- ज्ञान द्रव्य का उपयोग, प्राचीन एवं अर्वाचीन शास्त्र आदि लिखवाने, छपवाने एवं उनकी सुरक्षा करने, अजैन पण्डितों को पगार देने, ज्ञान भंडार के निर्माण एवं नवीनीकरण आदि, साधु-साध्वी के उपयोगी ज्ञान उपकरण आदि बहराने, साधु-साध्वी के अध्ययनार्थ जिनवाणी के प्रचार में, ज्ञान भण्डार की व्यवस्था में, पाठशाला आदि में, धार्मिक पुस्तकें खरीदने आदि में इस तरह ज्ञान प्रधान क्षेत्रों में हो सकता है। व्यवहारिक शिक्षा अर्थात स्कूल कॉलेज आदि की पढ़ाई में ज्ञान द्रव्य का उपयोग नहीं हो सकता। इसी प्रकार जैन श्रावक-श्राविकाओं को पगार के रूप में भी ज्ञान द्रव्य की राशि नहीं दे सकते। कारण विशेष होने पर देवद्रव्य के रूप में इसका प्रयोग हो सकता है। अन्य क्षेत्रों में इसका प्रयोग निषिद्ध है। शंका- ज्ञान द्रव्य और गुरु द्रव्य को एक साथ रखें तो क्या दोष है? समाधान- ज्ञान द्रव्य और गुरु द्रव्य दो अलग-अलग क्षेत्र हैं। इनका व्यय भी अलग-अलग क्षेत्रों में ही होता है। जैनाचार्यों ने इनका अलग-अलग विधान किया है इसी से स्पष्ट हो जाता है कि इन्हें अलग-अलग रखना चाहिए। ज्ञान द्रव्य का उपयोग ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में होता है वहीं गुरु द्रव्य पूर्व काल में तो देवद्रव्य के रूप में ही प्रयुक्त होता था किन्तु वर्तमान में इसका प्रयोग वैयावच्च द्रव्य के रूप में होता है अत: दोनों को अलग-अलग रखना ही श्रेयस्कर है। यदि किसी कारणवश दोनों द्रव्य एक-मेक हो जाए तो नीचे के खाते का द्रव्य ऊपर के खाते में जा सकता है। इस अपेक्षा से गुरु द्रव्य ज्ञान द्रव्य में जा सकता है। इस सम्पूर्ण द्रव्य का प्रयोग ज्ञान द्रव्य-गुरु द्रव्य मिश्र खाते में हो सकता है क्योंकि वैयावच्य द्रव्य को छोड़कर मात्र ज्ञान द्रव्य के रूप में प्रयोग करने से भी दोष लगता है अत: ऐसे द्रव्यों को संभालने का कार्य पूर्ण जागृति के साथ करना चाहिए। शंका- कल्पसूत्र आदि ज्ञान ग्रन्थों को बहराते समय उनकी अष्टप्रकारी पूजा क्यों करते हैं? समाधान- आगम ग्रन्थ जिनवाणी रूप होने से जिनेश्वर परमात्मा के समान ही पूज्य हैं अत: उनकी अष्टप्रकारी पूजा करनी चाहिए।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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