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________________ 322... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म.... प्रभासपाटण के भूमिखनन में प्राप्त एक प्राचीन ताम्रपत्र में बेबीलोन के राजा नेबुचन्द्र नेजर के द्वारा गिरनार पर्वत पर नेमिनाथ जिनालय का जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है। इनमें बेबीलोन प्रथम ईसा पूर्व 1140 में (भगवान पार्श्वनाथ से पहले) हुए तथा बेबीलोन द्वितीय ईसा पूर्व 604 से 561 के लगभग (भगवान महावीर के केवलज्ञान प्राप्ति से पहले) माने जाते हैं। दोनों में से किसी एक ने नाविकों द्वारा प्राप्त करके जुनागढ़ में स्थित अरिष्टनेमि प्रतिमा के पूजन के लिए प्रदान की थी। यह मंदिर भगवान पार्श्वनाथ से पहले का है। पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) में जेलम नदी के दक्षिणी तटवर्ती कटास राज्य के निकट मूर्तिगाँव (पूर्व का सिंहपुर) में जैन मंदिरों के खंडहरों की खुदाई से प्राप्त जिनमूर्तियाँ आदि प्राचीन सामग्री भी पुरातत्त्व विभाग के अनुसार ईसा पूर्व की है। यह सामग्री लाहौर म्यूजियम में संग्रहित है। कांगड़ा (हिमालच) आदि में अनेक नगरों में ईसा पूर्व से लेकर पन्द्रहवीं शती तक की प्रतिमाएँ मिलती है। कांगड़ा किले में महाभारतकालीन कटौच वंशीय राजा शिवशर्म ने आदिनाथ भगवान का मन्दिर निर्मित करवाया था और उन्हीं के वंशज राजा रूपचन्द्र ने अपने राजमहल में चौबीस तीर्थंकरों की रत्नप्रतिमाओं से युक्त जिनमन्दिर बनवाया था। तक्षशिला के खण्डहरों में ईसा पूर्व की अनेक जैन प्रतिमाएँ पुरातत्त्व विशेषज्ञों को मिली है। उड़ीसा की खंडगिरी एवं उदयगिरि की गुफाओं में राजा खारवेल के शिलालेख प्राप्त होते हैं। इन शिलालेखों में जैन मन्दिरों एवं जैन प्रतिमाओं को स्थापित करने का उल्लेख है। जैन मूर्तिकला का गौरवपूर्ण इतिहास पुरातत्त्व विभाग द्वारा जिन प्रतिमाओं की प्राचीनता के विषय में अनेकशः प्रमाण प्राप्त होते हैं। ऐसे ही अनेक प्राचीन प्रतिमाएँ कई जिनमन्दिरों में भी प्राप्त होती है। जिनका उल्लेख हमें जैन आगम सूत्रों में उपलब्ध होता है। ऐसी ही कुछ प्रतिमाओं का उल्लेख निम्न प्रकार है - मथुरा के कंकाली टीलें में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों प्रकार की जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थी। उन पर प्राप्त शिलालेख का वर्णन कल्पसूत्र में वर्णित गण, कुल, शाखा आदि से पूर्णरूपेण मिलता है। हैदराबाद के समीपवर्ती तीर्थ कुलपाकजी में माणिक्य स्वामी के रूप में पूजनीय प्रतिमा भरत महाराजा द्वारा भराई गई थी। शंखेश्वर पार्श्वनाथ की
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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