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________________ जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भों में ... 321 है और पाँच दिन का महोत्सव मनाया जाता है। तिब्बत के ही खिलवन नगर में 104 शिखर बद्ध जिनमन्दिर हैं। सभी मन्दिर रत्नजड़ित है। यहाँ के वनों में तीस मन्दिर हैं। इसलिए ये वनस्थली के नाम से भी प्रसिद्ध है। इनमें नंदिश्वर द्वीप का चित्रण करते हुए 52 जिनालय भी बनाएं गए हैं। ऑस्ट्रिया के बुडापेस्ट ग्राम के एक किसान के खेत में भूगर्भ से भगवान महावीर की प्रतिमा निकली थी जो वहाँ के संग्रहालय में रखी गई है। निप्रभसूरि रचित विविध तीर्थ कल्प में उल्लेखित 84 तीर्थों में उन्होंने क्रौंचद्वीप, सिंहदीप और हंसद्वीप में श्री सुमतिनाथ भगवान की पादुका होने का उल्लेख किया है। मंगोलिया में कई प्राचीन जैन मूर्तियों एवं मंदिरों के तोरण खंडित रूप से मिले हैं। अमेरिका में खुदाई करते हुए तांबे के बड़े सिद्धचक्रजी मिले हैं। पेरिस के एक प्रसिद्ध म्युजियम में भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा है। यह मूर्ति खडगासन में है। उसके ऊपर तीन छत्र है तथा जिस पादपीठ पर वे खड़े हैं वहाँ पर एक वृषभ की बैठी हुई आकृति है और कंधों पर केश लटक रहे हैं। ऐसे ही यदि भारतीय ऐतिहासिक साक्ष्यों का अध्ययन करें तो पुरातत्त्व की खोज में जैन धर्म की प्राचीनता को पुष्ट करने वाले अनेकशः उदाहरण प्राप्त होते हैं। मोहनजोदड़ो में प्रथम तीर्थंकर अर्हत ऋषभ के आकृति वाली मिट्टी की सीलें मिली है। हड़प्पा की खुदाई में एक नग्न जिनप्रतिमा का धड़ प्राप्त हुआ है। यह मूर्ति पटना के समीप लुहानीपुरा की खुदाई से प्राप्त ॠषभदेव की प्रतिमा से मिलती है। मथुरा के कंकाली टीले के स्तूप एवं तद समीपवर्ती क्षेत्रों से जटायुक्त भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा, पाँच सर्प फण वाली सुपार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा और भगवान महावीर आदि की अनेक पाषाण प्रतिमाएँ प्राप्त हुई है। इतिहास विशेषज्ञों के अनुसार यह स्तूप ईसा पूर्व 700 वर्ष प्राचीन श्री पार्श्वनाथ के समय की है। इस स्थान पर ईसा पूर्वकाल की अनेक जिनप्रतिमाएँ एवं शिलालेख प्राप्त होते हैं।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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