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________________ जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भों में ... 311 विचारसार प्रकरण में भी श्रेष्ठ गंध, सुगंधित धूप, अखण्ड अक्षत, पुष्प दीप, नैवेद्य, फल और जल से जिनपूजा आठ प्रकार की कही गई है। 85 मध्ययुग के साहित्य की गवेषणा करें तो उसमें जिनपूजा सम्बन्धी विवरण उपलब्ध ग्रन्थों में लगभग समान है। नित्य अष्टप्रकारी पूजा करने का प्रचलन मध्यकाल के अन्त में आया होगा ऐसा प्रतीत होता है । अंगपूजा में पुष्पपूजा को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। वहीं जल पूजा का क्रम अधिकतर अष्टोपचारी पूजा सम्बन्धी उल्लेखों में अन्त में प्राप्त होता है । गृह मन्दिर भी उस समय में सर्वत्र बनाए जाते होंगे, क्योंकि अधिकतर आचार्यों ने प्रथम गृह मन्दिर में जिनपूजा करने का उल्लेख किया है। अंग, अग्र एवं भाव पूजा रूप यह त्रिविध पूजा, पुष्प, नैवेद्य एवं स्तोत्र पूजा के रूप में नित्य की जाती थी । त्रिकालपूजा का प्रवर्त्तन होने के पश्चात प्रातःकाल गंध आदि द्वारा, मध्याह्न काल में भोजन से पूर्व पुष्पादि द्वारा एवं संध्या में दीपक आदि द्वारा देवपूजा करने का क्रम परिलक्षित होता है। अर्वाचीन साहित्य में जिनपूजा का बदलता स्वरूप अर्वाचीन काल की रचनाओं का अध्ययन करें तो जिनपूजा सम्बन्धी विधि-विधानों में अब तक अनेकशः उतार चढ़ाव आए हैं। अर्वाचीन काल पूजा उपकरण, विधि-विधान आदि बहुत से परिवर्तन परिलक्षित होते हैं । तत्कालीन श्राद्धविधि प्रकरण में पंचोपचारी आदि पूजाओं का वर्णन करते हुए कहा गया है कि श्रावक को पंचोपचारी, अष्टोपचारी एवं ऋद्धि विशेष से युक्त सर्वोपचारी पूजा करनी चाहिए। पंचोपचार पूजा पुष्प, अक्षत, गंध, धूप और दीपक इन पाँच पदार्थों से होती है। पुष्प, अक्षत, गंध, दीप, धूप, नैवेद्य, फल और जल इन आठ प्रकार के द्रव्यों से युक्त अष्टोपचारी पूजा आठ कर्मों का नाश करती है। सर्वोपचारी पूजा स्नान, विलेपन, वस्त्र, आभूषण, फल, नैवेद्य, दीपक, नाट्य, गीत, आरती आदि से होती है | 86 ग्रन्थकार ने सत्रह भेदी पूजा विधि में समाहित सत्रह प्रकार की पूजा का वर्णन भी किया है। उपाध्याय जिनमण्डन (वि. सं. 1492) द्वारा रचित कुमारपाल प्रबन्ध में जिनपूजा और गुरुपूजा का उल्लेख है । उन्होंने संध्या के समय गृहमंदिर में पुष्पपूजा करने का वर्णन किया है। 87
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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