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________________ जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...285 जापान में प्रगति के प्रतीक एवं आदर्श के रूप में मछली का चिह्न द्वार पर लटकाया जाता है। मत्स्य को शुभ शकुन मानते हुए यात्रा आदि से पूर्व इसके दर्शन को शुभ एवं सर्वोत्तम माना गया है। हिन्दू मतानुसार भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में प्रथम अवतार लिया था और प्रलयकाल में इसी ने मनु और सृष्टि की रक्षा नाव का रूप लेकर की। बौद्ध परम्परा के अनुसार मीन संसार समुद्र में दुखी और भ्रमण कर रहे प्राणियों को निर्भयता एवं स्वतंत्रता पूर्वक जीने का सदुपदेश देने की सूचक है, ठीक वैसे ही जैसे मछली निर्भय होकर स्वतंत्रता पूर्वक समुद्र में घूमती है। मीन युग्म को बुद्ध की दो आँखों का भी प्रतीक माना जाता है, तो इसे गंगा-यमुना इन दो नदियों, सूर्य एवं चंद्र स्वर या प्राण का भी सूचक माना जाता है। जैनाचार्यों के अनुसार यह परम शक्ति या दिव्यशक्ति के प्रवाह का सूचक है। इसे प्रसन्नता और स्वतंत्रता का सूचक भी माना गया है। इस तरह मीन युगल को एक मंगल चिह्न के रूप में सर्वत्र स्थान प्राप्त है जो जीवों को संसार प्रवाह के विरुद्ध अध्यात्म मार्ग पर गति करने की प्रेरणा देता है। आत्मस्वरूप का दर्शन दर्पण आठवें मंगल के रूप में श्वेताम्बर संप्रदाय में दर्पण का वर्णन है। हिन्दू एवं जैन परम्परा में दर्पण को मंगल रूप में स्थान प्राप्त है। दर्पण वस्तु के सच्चे स्वरूप को प्रतिबिम्बित करता है। दर्पण स्वयं मंगल रूप है। इसके समक्ष जो वस्तु जैसी आती है वैसी ही प्रतिबिम्बत हो जाती है। दर्पण स्वच्छता, निर्मलता एवं सच्चाई का प्रतीक है। हमारा हृदय भी दर्पण की भाँति स्वच्छ एवं निर्मल बने तथा उसमें परमात्मा का वास हो, यह इसकी प्रेरणा भी देता है। दर्पण के द्वारा जीवन को स्वच्छ एवं निश्छल बनाने की प्रेरणा भी प्राप्त होती है। कई स्थानों पर लोक व्यवहार में दर्पण दर्शन को शुभ शकुन माना जाता है। दर्पण के सामने कोई प्रकाश किरण आ जाए तो वह दुगुने वेग से उसे परावर्तित कर स्वस्थान को पुनः प्राप्त करवाता है परन्तु वह अंधकार को कभी परावर्तित नहीं करता वैसे ही हमारा जीवन भी होना चाहिए। हम दूसरों के उपकार एवं सद्गुणों को दुगुने वेग से परावर्तित करें तथा किसी के अवगुण आदि को अपने भीतर ही समाहित
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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