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________________ 284... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... बनता है। यह जीवन की निरंतरता का सूचक भी है। यही कारण है कि मृत्यु होने पर जीवन समाप्ति के प्रतीक रूप में घट फोड़ा जाता है। कलश को पूर्णता का प्रतीक भी माना जाता है। इसीलिए मंदिर की पूर्णता होने पर शिखर के ऊपर कलश की स्थापना की जाती है। चौदह स्वप्न में भी कलश का स्थान है। इससे यह निश्चित है कि कलश एक महामंगलकारी चिह्न है। कलश के दर्शन मात्र से आनंद एवं प्रमोद के भाव उत्पन्न होते हैं। इसीलिए गुरु महाराज आदि के प्रवेश के प्रसंग पर तथा रथयात्रा आदि में भी महिलाएँ कलश को धारण करती हैं। इस तरह कलश एक मंगलकारी चिह्न है। पवित्रता का पुंज भद्रासन भद्रासन या सिंहासन भी एक मांगलिक चिह्न है। यह बैठने का पवित्र उच्च स्थान है। राजा-महाराजाओं के बैठने की राजगद्दी भद्रासन कहलाती है। यह मुक्ति प्राप्त आत्माओं के पवित्र एवं पूजनीय आसन का प्रतीक है। अरिहंत परमात्मा समवसरण में इसी पर बैठते हैं। अरिहंत परमात्मा के बारह गुणों में सिंहासन का भी समावेश है। उच्च पद के धारक या सर्वोत्तम व्यक्ति को सदा उच्च या सर्वश्रेष्ठ आसन पर बिठाया जाता है। भद्रासन को भी इसलिए श्रेष्ठ आसन मानकर इसे अष्टमंगल में समाविष्ट किया गया है। तीर्थंकर परमात्मा समवसरण में इसी आसन पर बैठकर अपनी मधुर वाणी से जन-मानस को आंदोलित एवं प्रवर्तित करते हैं तथा धर्म मार्ग की स्थापना करते हैं। धर्म को उत्कृष्ट मंगल कहा गया है। अरिहंत परमात्मा महामंगलकारी एवं विश्व कल्याणकारी हैं अत: परमात्मा के बैठने का स्थान भी मंगलकारी होना चाहिए। इसलिए भद्रासन को भी अष्ट मांगलिक चिह्नों में अन्तर्भूत किया है। प्रगति का प्रेरणास्रोत मीन युगल दो मछलियों के युग्म को मीन युगल कहा जाता है। बौद्ध, हिन्दू एवं जैन इन तीनों संप्रदाय में मीन युगल को मंगल रूप स्वीकार किया गया है। सफलता, सौभाग्य एवं शुभ शकुन के रूप में मीन युगल एक प्रतिष्ठित मांगलिक प्रतीक है। मछली को निश्छल, निष्कपट, सच्चे प्रेम का प्रेरक भी माना है। मीन विपरीत परिस्थितियों में भी गति करते रहने का गति प्रसूचक है। मछली हमेशा जल प्रवाह की विपरीत दिशा में गति करती है, इसी कारण
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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