SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 274... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... समीप्य का अनुभव होता है । कई लोग कहते हैं कि नित्य पूजा करने पर भी भावों का जुड़ाव हर दिन हो यह आवश्यक नहीं ? और यदि भाव न जुड़े तो क्रिया करने का क्या महत्त्व ? जहाँ व्यक्ति की रुचि होती है, व्यक्ति के भाव उसमें स्वयमेव ही जुड़ जाते हैं। इसी प्रकार जिनकी रुचि परमात्म भक्ति में हो उनके भाव तो जुड़ ही जाते हैं परन्तु बाल जीव जिनका जुड़ाव परमात्मा से नहीं हुआ है, उन्हें क्रिया में भावशून्यता आ भी जाए तो कभी न कभी तो करते-करते भाव जुड़ेंगे भी। दीपक, बत्ती, घी, माचिस आदि हो तो कभी न कभी दीपक में ज्योति प्रकट की जा सकती है। यदि कोई यह कहे कि मुझे तो मात्र ज्योति चाहिए दीपक आदि की मुझे क्या जरूरत और वह दीपक को तोड़ दे तो क्या कभी ज्योति प्रकट की जा सकती है। यदि नहीं तो फिर भाव न जुड़ने के कारण यदि द्रव्य क्रिया का ही त्याग कर दिया जाए तो फिर भाव कैसे उत्पन्न होंगे। वरना द्रव्य क्रिया करते हुए भावोत्पत्ति की संभावना तो रहेगी। अतः क्रिया अनुष्ठान में जिनके भाव नहीं जुड़ते उन्हें क्रिया को छोड़ने की अपेक्षा उनमें किसी भी प्रकार से भावों को जोड़ने हेतु प्रयास करना चाहिए। जिनपूजा में प्रयुक्त मुद्राओं के हेतु एवं लाभ जिनपूजा- जिनदर्शन करते हुए विविध मुद्राओं के प्रयोग का निर्देश जैन ग्रन्थकारों ने किया है। प्रत्येक क्रिया से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट मुद्राएँ हैं जिनका मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक एवं बौद्धिक जगत पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। मुद्रा अर्थात Action | शरीर, हाथ, पैर आदि को विशिष्ट आकार या स्थिति में रखना मुद्रा कहलाता है। मुद्राओं का महान विज्ञान है। भिन्न-भिन्न मुद्राओं का भिन्न-भिन्न रहस्य बताया गया है। सामान्य व्यवहार में भी देखते हैं कि ट्राफिक पुलिस चारों ओर दौड़-भाग करते हुए हाथ के इशारों के आधार पर ही गाड़ियों का नियंत्रण करते हैं । मुद्राओं की सहायता से ही वे बिना बोले हाथ के विविध संकेतों द्वारा हजारों लोगों को एक साथ नियंत्रित कर सकते हैं। क्रिकेट मैच में अम्पायर के इशारों के आधार पर एक क्रिकेटर का भविष्य एवं मैच परिणाम निर्भर करता है । उसके द्वारा की गई एक छोटी सी गलती मैच के परिणामों को बदल सकती है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy