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________________ 264... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... देवता, गृहस्थ स्त्री-पुरुष,त्यागी साधु-साध्वी आदि सभी ने जिनप्रतिमा की उपासना करके अपना आत्मकल्याण किया है। मानव सभ्यता और जिन प्रतिमा भारतीय संस्कृति एवं अन्य विश्व संस्कृतियों में मन्दिर आदि प्रार्थना स्थलों के निर्माण का मुख्य हेतु मानव जगत का आध्यात्मिक विकास एवं आत्मोत्थान रहा है। उनकी कारीगरी, खंड-उपखंड, प्रतिमा आदि सभी की समुचित व्यवस्था एवं निर्माण इसी तथ्य को ध्यान में रखकर किया जाता है। जब भी कोई मुमुक्षु प्रभु भक्ति में मदमस्त हो जाता है तो वह निश्चित रूप से धर्मध्यान में संलग्न हो जाता है। इससे शुभ भावधारा निरंतर बढ़ती रहती है। साधक का जीवन सद्गुणों से युक्त एवं दुर्गुणों से मुक्त होने लगता है। ____ अरिहंत परमात्मा की शान्त-प्रशान्त मुखमुद्रा को देखने मात्र से हृदय में उनके गुणों की श्रृंखला तरंगित होने लगती है। चंचल मन सांसारिक भावों से दूर होकर सद्भावों में रमण करने लगता है। तीर्थंकर परमात्मा 18 दोषों से रहित तथा 34 अतिशय एवं बारह गुणों से शोभायमान हैं। वे वीतराग सर्वज्ञ सर्वश्रेष्ठ एवं विश्वपूज्य हैं। ऐसे परमात्मा का स्मरण करने मात्र से उनके गुणों का सिंचन होने लगता है। अनादिकाल से भटकते हुए जीव को परमात्म अवस्था उपलब्धि का मार्ग प्राप्त होता है। विधिपूर्वक जिनेश्वर देव की पूजा करने से पूजक स्वयं पज्यता की ओर अग्रसर हो जाता है। ___भारत में जिनमन्दिरों के निर्माण के पीछे कई वैज्ञानिक रहस्य भी अन्तर्भूत हैं जो साधक की मनस चेतना के परिवर्तन में विशेष सहायता प्रदान करते हैं। भारतीय मंदिरों का आकार एवं चारों ओर से उनके बंद होने के कारण मन्दिरों की ग्राहकता (रिसेप्टिवीटी) बनी रहती है। संतों एवं साधकों द्वारा उत्पन्न हुई आध्यात्मिक ऊर्जा एवं शुभ विचारधारा आदि की तरंगें वहाँ प्रवाहित रहती हैं। मंत्रोच्चारों की ध्वनि का प्रभाव भी वहाँ निरंतर रहता है। इस वातावरण में आने वाले व्यक्ति के हृदय पर उस पवित्र शांत-उपशांत वायुमण्डल का प्रभाव अवश्य पड़ता है। चित्त के अशुभ विचार आदि इस परिसर में आते ही बदल जाते हैं। ___ मंदिर की भाँति मूर्तियों का भी विशिष्ट प्रभाव मनुष्य के मानस पटल पर परिलक्षित होता है। मानव का मन आकार से अधिक प्रभावित होता है। अंतर
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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