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________________ जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...243 ‘परमात्मा के दर्शन करने से मेरा आज का दिन सफल हुआ' इस हर्ष की अभिव्यक्ति एवं जिनशासन की जय-जयकार का सूचन करने हेतु भी घंटनाद आदि किया जाता है। जिनमन्दिर में घंट आदि बजाने का एक विशेष क्रम नियत है, जिसके कुछ विशेष कारण जैनाचार्यों द्वारा बताए गए हैं। • सर्वप्रथम मंदिर में प्रवेश करते समय तीन बार घंट बजाया जाना चाहिए। यह मन, वचन, काया की प्रवृत्ति को बाहरी तत्त्वों से हटाकर प्रभु पूजा में जोड़ने का सूचक है। • दूसरी बार परमात्मा के अभिषेक के समय घंटनाद करना चाहिए। यह तीर्थंकर परमात्मा के जन्मोत्सव के आनंद की अनुभूति को प्रकट करता है। अभिषेक के समय यह कल्पना भी की जाती है कि परमात्मा स्वयं मेरे हृदय मंदिर में विराजमान हो रहे हैं। घंटनाद के द्वारा इसी अपार आनंद की अभिव्यक्ति की जाती है। • तीसरी बार द्रव्यपूजा समाप्त होने एवं भावपूजा प्रारंभ होने से पूर्व 27 डंके से युक्त थाली या घंट बजाया जाता है। विशेष रूप से पूजन-महापूजन आदि के समय भी प्रत्येक पूजा के पूर्ण होने पर यह बजाया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि मैंने जो द्रव्यपूजा की उसके द्वारा मुझे भावपूजा का अधिकार प्राप्त हुआ अर्थात साधु जीवन की प्राप्ति हुई क्योंकि भावपूजा के मुख्य अधिकारी साधु-साध्वी ही हैं। • चौथी बार यह घंटनाद जिनमंदिर से निकलते हुए बजाया जाता है। इस समय सात बार घंट बजाते हैं। जिसे सप्तभय पर विजय प्राप्ति का सूचक माना गया है। परमार्थत: वीतराग परमात्मा के दर्शन के बाद जीवन में कोई भय नहीं रहता। __ शंख, घंटा आदि के नाद से उत्पन्न ध्वनि मानसिक ही नहीं शारीरिक रोगों का भी निदान करती है। संगीत में ऐसी शक्ति है कि वह दुखी एवं संतप्त मन को भी शांत कर सकता है। मंदिर दर्शन आदि के लिए व्यक्ति मानसिक शांति एवं स्वस्थता की प्राप्ति हेतु भी जाता है अत: जिनमंदिर में शंख, घंट, झालर आदि का वादन किया जाता है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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