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________________ 242... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... द्वारा इनका उपयोग किया गया था। रेशमी वस्त्र भी ऐसी ही अनेक विशेषताओं से युक्त है। वैज्ञानिकों के अनुसार रेशम तत्त्व में एक ऐसा बल होता है जो अशुद्ध तत्त्वों को दूर करता है और शुद्ध तत्त्वों को ग्रहण करता है। यह विशेषता सूती वस्त्र में नहीं देखी जाती। अत: आत्मिक अध्यवसायों की शुद्धि निमित्त तथा अशुद्ध तत्त्वों के संरक्षण के रूप में रेशमी वस्त्र का प्रयोग ही पूजा हेतु करना चाहिए। घंटानाद-शंखनाद आदि का प्राकृतिक स्वरूप एवं कारण ____ संगीत और मनुष्य का सम्बन्ध पूर्व समय से ही चला आ रहा है। संगीत की ध्वनि से निकलती लहरें मनुष्य के मन एवं मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। जब व्यक्ति को किसी कार्य में सफलता प्राप्त होती है तब उस आनंद की अभिव्यक्ति हेतु या हर्ष को अभिव्यंजित करने हेतु वह संगीत, नृत्य आदि का सहारा लेता है। कभी तालियों के द्वारा तो कभी घंट, शंख, नगाड़ा, ढोलक, झालर आदि के माध्यम से अपने आनंद को प्रकट करता है। व्यवहार में भी पुत्र जन्म आदि पर थाली बजाने की परम्परा है। ___भगवान के दर्शन होने पर भक्त को भी अत्यंत आनंद होता है जिसे उद्घोषित करने के लिए भक्त भी ऐसे मंगलनाद करता है। जब राजामहाराजाओं का विजयोत्सव मनाया जाता है तब शंखनाद किया जाता है तो फिर राज राजेश्वर तीर्थंकर परमात्मा के पूजन, आरती आदि के समय तो मधुर स्वरों का मंगलनाद होना ही चाहिए। ___ संगीत की लहरों का प्रभाव वातावरण पर भी पड़ता है। हम देखते हैं कि जैसे ही गरबा की धुन बजती है लोगों के हाथ-पैरों में अनायास ही गति आ जाती है। माचिंग बैण्ड की आवाज सुनते ही सैनिकों के चलने की लय बदल जाती है। Disco के संगीत पर युवाओं के पैर थिरकने लग जाते हैं। इस प्रकार संगीत का नाद मनुष्य के मानस पटल पर विशेष प्रभाव डालता है। जिनेश्वर परमात्मा के दर्शन के अनुभूत आनंद को प्रतिघोषित करने हेतु तथा भगवान की आरती-पूजा के अनुरूप दिव्य वातावरण की उपस्थिति हेतु भी घंटे आदि का नाद किया जाता है। प्रभु पूजन और दर्शन द्वारा निर्मित अध्यवसाय, भाव विशुद्धि एवं सत्संस्कारों का प्रभाव जीवन में बना रहे इस ध्येय से भी घंट की मंगल ध्वनि की जाती है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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