SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 240... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... लघुशंका या मैत्री तोड़ने आदि की सूचक है। जबकि अनामिका अंगुली का प्रयोग सगाई, विवाह आदि सम्बन्धों में अंगूठी पहनाकर अन्तर हृदय जोड़ने के लिए होता है। परमात्मा एवं भक्त के हृदय तारों को जोड़ने में अनामिका सहायक बनती है। शोधकर्ताओं एवं चिंतकों के अनुसार अनामिका अंगुली की वाहकता एवं संवेदनशीलता सर्वाधिक होती है। अतः इसके संपर्क आने वाले पदार्थ की संवेदनशीलता स्वतः बढ़ जाती है। इस अंगुली का संबंध सीधा हृदय से है। जिनपूजा करते समय अनामिका अंगुली एवं परमात्मा का स्पर्श होने से जिनबिम्ब के शुभ परमाणुओं का प्रवाह हमारे भीतर हो जाता है। इससे हृदय एवं भावों का शुद्धिकरण होता है तथा जीवन में शुभ भावों का सृजन, भक्ति संस्कारों का वर्धन एवं पुण्यानुबंधी पुण्य का अर्जन होता है । ऐसे ही अनेक कारणों से जिनबिम्ब की पूजा अनामिका अंगुली द्वारा की जाती है। परमात्मा की पूजा हेतु सफेद वस्त्रों का विधान क्यों? श्राद्ध विधि प्रकरण में जिनपूजा संबंधी तथ्यों का विवरण करते हुए कहा है- 'सेयवत्थणिअंसणा' अर्थात श्वेत वस्त्र धारण करके जिनपूजा करनी चाहिए। 16 इसके पीछे कई कारण नजर आते हैं। रंगों का विशेष प्रभाव धर्माचार्यों एवं वर्तमान वैज्ञानिकों ने माना है। रंग चिकित्सा के द्वारा आज कई रोगों का इलाज किया जा रहा है। लाल रंग जहाँ उत्तेजना का प्रतीक है वहीं हरा रंग स्वस्थता का। इसी प्रकार श्वेत रंग शान्ति एवं सात्विकता के गुणों से युक्त है। श्वेत वस्त्र धारण करने से मन में शुभ भावों का संचार होता है। परमात्मा की पूजा के द्वारा जीवन में इन्हीं गुणों का प्रकटन हो, मन्दिर का वातावरण शांति एवं समाधियुक्त बने इसलिए पूजा हेतु श्वेत वस्त्रों का विधान किया गया है। आचार्य हरिभद्रसूरि षोडशक प्रकरण में कहते हैं- "सित शुभ वस्त्रेणेति " अर्थात शुद्ध श्वेत वस्त्र या फिर अन्य लाल-पीले वस्त्रों का प्रयोग पूजा हेतु कर सकते हैं। किन्तु मुख्य रूप से श्वेत वस्त्रों का ही विधान है। 17 वर्तमान में विविध रंगों के सिले हुए भिन्न-भिन्न Quality के वस्त्र पूजा हेतु प्रयुक्त होने लगे हैं। परंतु सादगी, सुंदरता और सौम्यता की अपेक्षा से सफेद रंग अधिक प्रभावी सिद्ध होता है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy