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________________ जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं ... ... 235 तिलक ललाट के मध्यभाग में आज्ञाचक्र पर किया जाता है। यह हमारी ज्ञान दृष्टि को जागृत, स्वभाव को शांत, विचारों को स्थिर एवं एकाग्र करता है । आज्ञा चक्र पर तिलक करने से हमारी शक्ति का केन्द्रीकरण भी उसी स्थान पर हो जाता है, जिससे शक्ति का ऊर्ध्वारोहण होता है। इस विधि के द्वारा सुषुप्त मन को जागृत करते हुए शक्ति के प्रवाह को सहस्रार चक्र की ओर गतिशील कर समस्त सिद्धियों को प्राप्त किया जा सकता है। तिलक चंदन से ही क्यों किया जाता है? समाधान है कि शरीर में सर्वाधिक संवेदनशीलता तिलक के स्थान पर ही होती है। उस संवेदनशीलता को अधिक गहन बनाने के लिए चंदन श्रेष्ठ द्रव्य है। शरीर में प्रवाहित शक्ति को यह अच्छी तरह खींच सकता है। इससे चेतन तत्त्व को शांति एवं शीतलता का अनुभव होता है। इन्हीं सब गुणों के कारण तिलक हेतु चंदन का प्रयोग किया जाता है। तिलक क्यों करना चाहिए? तिलक लघुता एवं नम्रता का प्रतीक है। जीवन में विनय, विवेक, शासन समर्पण एवं नम्रता जैसे गुणों का विकास कर यह व्यक्ति को सर्वजन प्रिय बनाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि 'नमे ते सहुने गमे ।' तिलक लगाने से जिन आज्ञा पालन के प्रति सतत जागरूकता बनी रहती है। इसके प्रभाव से गलत कार्य, अनैतिक आचरण एवं अमानवीय प्रवृत्तियाँ आदि करने से पूर्व व्यक्ति का मन अटक जाता है । नैतिक बल में वृद्धि होती है। सज्जनों की संगति स्वयमेव प्राप्त होती है। प्रभु भक्त के रूप में अस्मिता बनती है। इससे मन को साधा जा सकता है। अतः मनोविजयी, कर्म विजयी बनने का आत्मबल जागृत होता है। तिलक कहाँ और किसलिए किया जाता है? शास्त्रानुसार श्रावकों को परमात्मा की आज्ञा धारण करने हेतु आज्ञाचक्र पर, परमात्मा का गुणगान करने हेतु कंठ पर, परमात्मा को हृदय में स्थापित करने हेतु वक्षस्थल के मध्य भाग पर तथा शक्तियों का संचय करने हेतु शक्ति केन्द्र नाभि पर तिलक किया जाता है। यदि आभूषण न पहने हों तो उनके प्रतीक रूप में हाथों की दो कलाईयों, अंगुलियों एवं कान पर केशर लगाते हुए उसके ऊपर बादला डालकर वीरवलय मुद्रिका आदि बनानी चाहिए। परमात्मा के प्रति रहे प्रेम एवं समर्पण भाव की अभिव्यक्ति करने हेतु कपाल पर तिलक करते हैं। दान के प्रतीक रूप में हाथों पर तिलक किया जाता
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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