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________________ 230... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... • परमात्मा की अष्ट प्रकारी पूजा करने से लाख वर्ष जितने उपवास का लाभ होता है। • प्रभु के समक्ष विवेक पूर्वक गीत, नृत्य आदि करने पर अनगिनत उपवासों का लाख होता है। • स्तुति, स्तोत्र, स्तवन आदि के द्वारा परमात्मा का गुणगान करने से अनंत पुण्य का बंधन होता है । • पुष्प-पुष्पमाला आदि अर्पण करने से महान लाभ की प्राप्ति होती है। 10 यदि परमात्म भक्ति में अत्यन्त लीन हो जाए तो रावण के जैसे तीर्थंकर नाम कर्म का भी उपार्जन किया जा सकता है। परमात्मा के आलंबन से यदि उत्कृष्ट भाव जागृत हो जाए तो केवलज्ञान एवं मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है जैसे नागकेतु को पुष्पपूजा करते हुए केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के अनुसार जिनेश्वर देव की प्रतिदिन पूजा करनी चाहिए क्योंकि दान आदि गुण के समान यह भी परिणाम विशुद्धि का हेतु है। श्री महाकल्पसूत्र के अनुसार जो पुरुष जिन प्रतिमा की पूजा करता है, उसको सम्यग्दृष्टि समझना और जो जिनप्रतिमा की पूजा नहीं करता उसे मिथ्यादृष्टि समझना चाहिए। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के अनुसार अरिहंत या तीर्थंकर परमात्मा की पूजा करने से द्वेष आदि दुर्भाव न्यून होते हैं तथा मन प्रसन्न होता है । मन प्रसन्न होने से समाधि एवं ध्यान में एकाग्रता प्राप्त होती है। समाधि की संप्राप्ति से कर्मों की निर्जरा तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः अरिहंतों की पूजा करना सर्वथा न्याय संगत एवं युक्तियुक्त है। इस प्रकार जिनदर्शन एवं जिनपूजा के द्वारा श्रावकों को अनन्य लाभ की प्राप्ति होती है। परमात्मा का दर्शन, पूजन एवं वंदन आदि करने से मति शुभ बनती है, कुमति का नाश होता है एवं दुर्गति का निवारण होता है। परमात्मा की प्रशांत मुखमुद्रा एवं मनमोहक स्वरूप आत्म शांति प्रदायक है, क्योंकि पृथ्वी पर जितने भी शांत परमाणु हैं उन सभी को एकत्रित करके प्रभु का निर्माण हुआ है। किसी दार्शनिक ने कहा है - One Picture is worth than ten thousand words. अर्थात एक चित्र दस हजार शब्दों का काम करता है । के रूप
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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