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________________ जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...229 जिनपूजा के माध्यम से प्रभु आकर्षण से प्रारंभ हुई अध्यात्म उत्कर्ष की प्रक्रिया अंततोगत्वा मोक्ष को उपलब्ध करवाती है। परमात्मा की जल पूजा कमल को दूर करती है। चंदन पूजा के द्वारा विभाव दशा में भटक रहा जीव स्वाभाविक शीतलता आदि गुणों को प्राप्त करता है तथा विषय कषाय आदि से विरक्त होता है। पुष्प पूजा के माध्यम से कुटिल वृत्तियों का उन्मूलन होकर कोमलता, संवेदनशीलता, मानवीयता जैसे श्रेष्ठ भावों का जागरण होता है। धूप पूजा इस आत्मा को मोक्ष की ओर अग्रसरित होने की प्रेरणा देती है। दीपक पूजा से अनंतकाल का अज्ञान रूपी अंधकार दूर होकर सम्यक ज्ञान का दीपक प्रज्वलित होता है। इसी प्रकार अक्षत, नैवेद्य, फल आदि के द्वारा की गई पूजा आहार संज्ञा को समाप्त कर अणाहारी पद प्राप्त करवाती है, इस तरह जिनपूजा यह निजरूप को प्राप्त करने का मुख्य सोपान है। जिनदर्शन के विविध चरण एवं उनकी लाभ परम्परा जिनदर्शन एवं प्रभुपूजन को लाभ कमाने का अप्रतिम अवसर माना गया है। इसका एक-एक चरण अनन्य लाभ का उपार्जन करवाता है। गीतार्थ परम्परा के अनुसार मात्र परमात्म दर्शन की इच्छा करने से जिनपूजा का शुभ फल मिलना प्रारंभ हो जाता है, जो क्रमशः बढ़ते-बढ़ते मोक्ष रूपी परमोच्च फल की प्राप्ति भी करवाता है। शास्त्रों के अनुसार • जिनमंदिर जाने की इच्छा मात्र करने से एक उपवास का लाभ होता है। • जिनमंदिर जाने हेतु अपने स्थान से उठने पर दो उपवास का लाभ होता है। • जिनमंदिर के लिए प्रस्थान करने पर तीन उपवास का लाभ होता है। जिनालय के लिए प्रथम कदम उठाने पर चार उपवास का लाभ होता है। • जिनमंदिर के मार्ग पर चलते हुए पाँच उपवास का लाभ होता है । जिनमंदिर के आधे रास्ते को पार करने पर पंद्रह उपवास का लाभ होता है। जिनमंदिर के शिखर के दर्शन होने पर तीस उपवास का लाभ होता है। · • जिनमंदिर के निकट पहुँचने पर पाँच मास के उपवास का लाभ होता है। • जिनालय के द्वार में प्रवेश करने पर एक वर्ष के उपवास का लाभ होता है। · • परमात्मा की प्रदक्षिणा देते हुए - सौ वर्ष के उपवास का लाभ होता है। • परमात्मा के भावपूर्वक दर्शन करने से एक हजार वर्ष के उपवास का लाभ होता है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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