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________________ 208... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... दौरान सौधर्मेन्द्र द्वारा वृषभ रूप धारण कर परमात्मा के अभिषेक करने का वर्णन करते समय इसका प्रयोग किया जाता है। तांबा कुंडी- तांबे का कुंडीनुमा एक बरतन विशेष तांबा कुंडी कहलाता है। परमात्मा का अभिषेक जल एकत्रित करने हेतु तथा शान्ति स्नात्र आदि करते समय इसी में कलश आदि रखा जाता है। ___अंगलूंछन वस्त्र- सूती मलमल का मुलायम प्रमाणोपेत कपड़ा जिससे जिनप्रतिमा का लंछण किया जाता है उसे अंगलूंछण वस्त्र कहते हैं। जैसा कि इसके नाम से ही ज्ञात होता है इस वस्त्र को अभिषेक करने के बाद जिनप्रतिमा पर रहे हुए जल को सुखाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। पाटलूंछण- पबासन आदि को पोछने के लिए प्रयोग में लिए जाने वाला मोटा वस्त्र पाटलूंछण कहलाता है। मुख्यतया नेपकिन आदि का प्रयोग पाटलूंछण के रूप में होता है। वालाकुंची (खसकुंची)- वाला या खस नामक सुगंधित घास अथवा उसकी सुगन्धित जड़ों को एकत्रित करके छोटा झाड़नुमा बनाया गया उपकरण वालाकुंची या खसकुंची कहलाता है। इसका प्रयोग जिनप्रतिमा पर लगे हुए केशर, वरख, चिकनाहट आदि को दूर करने के लिए किया जाता है। उपयोग करने से पूर्व इसे 10 मिनट तक पानी में भिगाकर रखना चाहिए। शलाका- चाँदी या तांबे की पतली तार शलाका कहलाती है। संधि स्थान या छोटी गहरी जगह जहाँ से पानी सोंखना सम्भव नहीं होता वहाँ पर शलाका द्वारा वस्त्र डालकर पानी को सुखाया जाता है। आदर्श (दर्पण)- Frame किया हुआ छोटा काँच या दर्पण आदर्श कहलाता है। जिनप्रतिमा के तेजोदिप्त मुखमंडल एवं आँखों को साक्षात न देख सकने के कारण उसे दर्पण में देखा जाता है। परमात्मा को हृदय में स्थापित करने के प्रतीक रूप में भी दर्पण के द्वारा परमात्मा के दर्शन किए जाते हैं। दर्पण पूजा के समय इसका प्रयोग किया जाता है। तालवृन्त (पंखी)- चाँदी आदि धातु से निर्मित छोटी पंखी तालवृन्त या पंखी कहलाती है। परमात्मा के समक्ष पंखी आदि करके 56 दिक्कुमारियों का अनुकरण किया जाता है। इसी के साथ विनय, बहुमान एवं सेवकत्व भावों की अभिव्यक्ति की जाती है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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